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Thursday, January 27, 2011

१४ सितम्बर,१९४९ ई.

१४ सितम्बर,१९४९ ई. को भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया | संविधान की धारा १२० के अनरूप संसद का कार्य हिंदी या अंग्रेजी में किया जा सकता है | धारा २१० के अंतर्गत राज्यों के विधानमंडलों का कार्य अपने-अपने राज्य की राजभाषा , हिंदी,या अंग्रेजी में किया जा सकता है |
हमारी हिंदी राजभाषा के साथ-साथ राष्ट्रभाषा भी है | जिस भाषा में शासक या शासन का काम होता है, उसे राजभाषा कहा गया और जिस भाषा को जन साधारण अपने विचारों के विनिमय (आदान-प्रदान ) के लिए प्रयोग में लाती है ,उसे राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाता है |  
 शायद समय आगया है -परिवर्तन का | जी हाँ! यह समय की मांग है | जो अशुधियां हमारे संविधान निर्माण कर्ताओं ने कीं हैं,उन्हें अशुधि मुक्त करने का समय आ गया है | राष्ट्रभाषा हिंदी को अपने देश के सभी राज्यों के विधानमंडलों में राजभाषा के तौर स्थापित करने का समय आ गया है |
जब तक ऐसा नहीं किया जायेगा,तब तक हम भारतीय विश्व का  तीसरी दुनिया कहलाते फिरेंगे |
क्षेत्रीय भाषाओं को नजरंदाज करने को कौन कह रहा है!मेरी यही बात अंग्रेजी पर भी लागु होती है|
हम जितनी भाषा सीखेंगे,हमारे लिए उतना ही लाभदायक होगा | जहाँ तक शिक्षा की बात है,सो तो हिंदी ही में होनी चाहिए!सरकार को अपनी बंद आँखें खोल कर,यह देखना होगा की देश की जन साधारण सबसे ज्यादा किस भाषा को प्रयोग में लती है | उसी भाषा को राष्ट्रभाषा और राजभाषा के रूप में लागु कर देनी चाहिए | 
जब हमारे देश में मुघलों का राज था तब उर्दू राज भाषा थी | जब अंग्रेजों का राज था,तब अंग्रेजी राजभाषा बनी |अब हम हिन्दुस्तानियों का राज है |फिर क्यों इतनी भाषाएँ या भाषाई झगड़े | हम भारतीयों को एक ऐसी भाषा को चुनना होगा, जो हमें एक रखते हुए कामयाबी की फलक पर पहुंचा सके |इस कसौटी पर मात्र हिंदी ही खरी उतरती है | अतःहमारे देश में सिर्फ और सिर्फ हिंदी को ही राजभाषा और राष्ट्रभाषा  का सम्मान मिलनी चाहिए |इसी भाषा में कामयाबी का मन्त्र छिपा हुआ है !फिर देर किस बात की है?
दुष्यंत कुमार के शब्दों में कहना चाहूँगा  ---

"ज़िन्दगी ने कर लिया स्वीकार 
अब तो पथ यही है |
अब उफनते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है ,
एक हल्का-सा धुंधलका था कहीं कम हो चला है ,
यह शिखा पिघले न पिघले रास्ता नम हो चला है ,
क्या करूँ आकाश की मनुहार ,
अब तो पथ यही है |"



आप राष्ट्रभाषा और राजभाषा के तौर पर किस भाषा को चुनना पसंद करेंगे -अंग्रेजी या हिंदी,और क्यों ?