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Friday, October 7, 2011


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काव्य शास्त्र - 16

काव्यशास्त्र –१६ - आचार्य परशुराम राय आचार्य  क्षेमेन्द्र   आचार्य क्षेमेन्द्र कश्मीर वासी थे। इनका काल ग्यारहवीं शताब्दी है। कश्मीर नरेश अनन्तराज के शासन काल में  इनका समय आता है। इसके अतिरिक्त अनन्त राज के बाद उनके पुत्र कलश के शासन काल
 
मनोज कुमार
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काव्यशास्त्र - १५

काव्यशास्त्र – १५     आचार्य परशुराम राय   आचार्य कुन्‍तक आचार्य कुन्‍तक आचार्य राजशेखर के परवर्ती और आर्चा महिमभट्ट के पूर्ववर्ती है । इनका काल दसवीं शताब्‍दी का अन्तिम भाग माना जाता है । क्‍योंकि कुंतक ने अपने ग्रंथ वक्रोवित जीवित
 
मनोज कुमार
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काव्यशास्त्र-१४

आचार्य राजशेखर आचार्य परशुराम राय आचार्य राजशेखर का काल दसवीं शताब्‍दी का आरम्‍भ माना जाता है। ये विदर्भ राज्‍य के निवासी थे। आचार्य दण्‍डी के बाद ये दूसरे आचार्य है जो कश्‍मीर के बाहर के थे। वैसे इनका कार्यक्षेत्र कन्‍नौज रहा है। इन्‍होंने स्‍वयं अपने
 
मनोज कुमार
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आंच पर है लक्षणा शक्ति

-- करण समास्तीपुरी रमेश जोशी के आवास पर संक्षिप्त परिचर्चा थी। कुछ लोग बहुत से लोगों की प्रतीक्षा में थे। तभी एक एक व्यक्ति विशेष के परिचय की पुष्टि के लिए, डॉ रणजीत ने कह दिया, "तथाकथित माताजी"। मंजू वेंकट का चौंकना अस्वाभाविक नहीं था क्यूंकि जिनके विषय
 
करण समस्तीपुरी
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काव्य शास्त्र – 13 ::आचार्य अभिनव गुप्त

आचार्य अभिनव गुप्त --- आचार्य परशुराम राय आचार्य अभिनव गुप्त दसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आते हैं। आपने मूल निवास और परिवार आदि के विषय में ’तंत्रलोक’ नामक ग्रंथ में थोड़ा विवरण दिया है। इसके अनुसार इनके पूर्वज गंगा-यमुना के मध्यवर्ती प्रदेश कन्नौज
 
मनोज कुमार
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काव्यशास्त्र : भाग - 10

आचार्य मुकुलभट्ट-आचार्य परशुराम राय आचार्य मुकुलभट्ट का काल नवीं शताब्दी है। आचार्य आनन्दवर्धन और आचार्य मुकुलभट्ट के पिता कल्लटभट्ट कश्मीर नरेश अवन्तिवर्मा के शासन काल में थे। महाकवि कल्हण ने ‘राजतरंगिणी’ में इस प्रकार का उल्लेख किया है- अनुग्रहाय
 
करण समस्तीपुरी
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काव्यशास्त्र : भाग - 9

आचार्य भट्टनायक-आचार्य परशुराम राय आचार्य भट्टनायक मूलतः मीमांसक हैं और इनका काल दसवीं शताब्दी माना जाता है। ये आचार्य आनन्दवर्धन के बाद हुए हैं। काव्यशास्त्र पर इनका एकमात्र ग्रंथ ‘हृदयदर्पण’ है। पर दुर्भाग्य से यह उपलब्ध नहीं है। ये ध्वनि-सम्प्रदाय के
 
करण समस्तीपुरी
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काव्यशास्त्र : भाग 8

आचार्य रुद्रट -आचार्य परशुराम राय काव्यशास्त्र के इतिहास में आचार्य वामन के बाद प्रसिद्ध आचार्य रुद्रट का नाम आता है। इनका एक नाम शतानन्द भी है। इस संदर्भ में आचार्य रुद्रट के एक टीकाकार ने इन्हीं का एक श्लोक उद्धृत किया हैः- शतानन्दपराख्येन
 
करण समस्तीपुरी
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काव्यशास्त्र : भाग 5

आचार्य दण्डी --आ.परशुराम राय आचार्य दण्डी महाकवि भारवि के प्रपौत्र हैं। इसका उल्लेख उन्होंने अपने ग्रंथ ‘अवन्तिसुन्दरीकथा’ में किया है। आचार्य दण्डी का काल आठवीं विक्रम शताब्दी में विद्वानों ने तय किया है। आचार्य भामह के बाद काव्यशास्त्र पर जिनका ग्रंथ
 
करण समस्तीपुरी
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काव्यशास्त्र : भाग 4

आचार्य भामह -- आचार्य परशुराम राय आचार्य भामह का काल निर्णय भी अन्य पूर्ववर्ती आचार्यों की तरह विवादों के घेरे में रहा है। आचार्य भरतमुनि के बाद प्रथम आचार्य भामह ही हैं जिनका काव्यशास्त्र पर ग्रंथ उपलब्ध है। आचार्य भामह के काल निर्णय के विवाद को
 
करण समस्तीपुरी