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Wednesday, October 5, 2011

उपन्यास सम्राट, आलोचना सम्राट, टिप्पणी सम्राट और हास्य सम्राट



प्रेमचंद
आज उपन्यास सम्राट कथाकार मुंशी प्रेमचंदजी का जन्मदिन है। इस मौके पर कई साथियों प्रेमचंदजी को याद करते हुये उनपर पोस्टें लिखीं। उनमें से कुछ के लिंक ये हैं:
  1. ‘मजबूरी’ है इसीलिए तो प्रेमचंद को याद करते हैं
  2. हम और हमारे आसपास प्रेमचंद की मौजूदगी
  3. ’गमी’ – प्रेमचंद के जन्मदिवस पर
  4. उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के जन्म-दिवस पर विशेष
  5. हेडमास्टर प्रेमचंद
  6. प्रेमचंद: एक परिचय – [आलेख] अभिषेक सागर
  7. डाककर्मी के पुत्र थे प्रेमचंद
  8. बॉलीवुड में मुंशी प्रेमचन्द ने कहा था
  9. प्रेमचंद : प्रासंगिकता के सवाल
  10. गोदान-भारतीय किसान की आत्मकथा
कबाड़खाने पर हर्षवर्धन ने कहा:प्रेमचंद का लिखा अगर थोड़ा सा भी खींचे रहे तो, समझिए हमारी उत्सवधर्मिता सार्थक हो गई।
वहीं राजेश जोशी का कहना है:प्रेमचंद के साथ शायद सबसे अच्छा न्याय यही होगा कि उन्हें समारोहों और गोष्ठियों से निकालकर गुटके की तरह प्रचारित प्रसारित किया जाए.
अरे वो गुटका नहीं यार. बाबा तुलसीदास का गुटका यानी मानस!

नामवर सिंह
तीन दिन पहले हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह जी ८३ वर्ष के हो गये। इस मौके पर जे एन यू में उनका हैप्पी बर्ड डे मनाया गया। २८ जुलाई को उनका हैप्पी बर्थडे दिल्ली में ही त्रिवेणी सभागार में मान्य गया, वहां उन्होंने कम से कम दो साल और जीने का संकल्प लिया और जनता ने उनसे कम से कम सौ साल जीने की गुजारिश की।
नामवर जी बातचीत करते हुये उनके भाई काशीनाथ सिंह ने एक बार पूछा था-आपको कैसे लोगों से ईर्ष्या होती है?
जो वही कह या लिख देते हैं जिसे सटीक ढंग से कहने या लिखने के लिये मैं बेचैन रहा
- नामवरजी का जबाब था। 
नामवर जी को उनके जन्मदिन की बधाई देते हुये उनके शतायु होने की कामना करता हूं।

समीर लाल
समीरलालजी ने दो दिन पहले पैदा लिया था। भाई लोगों ने उनको इत्ती हैप्पी बड्डे बोली कि उनका ब्लडप्रेशर बढ़ गया और वे भगवान से शिकायत करने लगे-हे प्रभु, ये तेरी माया…अल्लाताला ने इत्ता हसीन बनाया है। रंग भी क्या लाजबाब दिया है कि अगर जरा सा खूबसूरत हों कोई तो कहें- ब्लैक ब्य़ूटी। समीरजी तो ब्यूटी के साथ क्यूटी भी हैं। फ़िर भी आदत है शिकायत करने की सो कर रहे हैं। कोई कुछ कह भी तो नहीं सकता न इससे। जरा सी बात में तो भावुक हो जाते हैं।
हमने जब ये वाकया ताऊजी को बताया तो उन्होंने समीरजी को उठा के (कह रहे हैं तो मान लो भाई) रामप्यारी की क्लास में डाल दिया। ताऊ आजकल न जाने क्यों सब काम रामप्यारी से करवाने लगे हैं। उनको न जाने यह बात क्यों नहीं समझ में आ रही है कि अगर कहीं समीरजी ने रामप्यारी को झांसे में लेकर गाना-ऊना सुना दिया तो क्या होयेगा?

रामकृष्ण ओझा
ज्ञानजी हमसे दो दिन से नाराज से हैं कि समीरलालजी के जन्मदिन के मौके पर उनकी तारीफ़ करते हुये उनकी खिंचाई क्यों नहीं की गयी। नाराजगी में ही वे गंगा किनारे चले गये और रामकृष्ण ओझा से हाथ मिला लिया(समीरलालजी की खिंचाई के लिये?)। ओझाजी का परिचय भी जान लीजिये:
(वे)शिवकुटी में रहते हैं। मैडीकल कालेज में नौकरी करते हैं। इसी साल रिटायर होने जा रहे हैं। उन्होने मुझे नमस्कार किया और मैने उनसे हाथ मिलाया। गंगा तट पर हमारा यह देसी-विलायती मिक्स अभिवादन हुआ। … रामकृष्ण ओझा जी को मालुम न होगा कि वे हिन्दी ब्लॉगजगत के जीव हो गये हैं। गंगा किनारे के इण्टरनेटीय चेहरे!
गौतम राजरिशी के बारे में टिपियाते हुये ने पूजा उपाध्याय ने लिखा था:

गौतम राजरिशी
पहली बार किसी फौजी की जिंदगी का ये हिस्सा देख रही हूँ, ग़ज़ल, वजन, मात्रा, बहर…कितना कुछ का ख्याल रख लेते हैं आप और भाव भी कमाल के होते हैं…शायद फौज में जो precision सिखाया गया है आप यहाँ भी काम ले लेते हैं. अच्छा लगा आपको पढ़ना.
आज गौतम राजरिशी ने अपनी ब्लागिंग का पहला साल पूरा किया और अपनी पचासवीं पोस्ट लिखी। उनको खूब सारी बधाईयां।
पूजा सवाल पूछती हैं

पूजा
हमेशा मुझसे ही क्यों खफा होते हैं
चाँद, रात, सितारे…पूरी रात
अनदेखे सपनों में उनींदी रहती हूँ
नींद से मिन्नत करते बीत जाते हैं घंटे
सुबह भी उतनी ही दूर होती है जितने तुम
कहावतें कित्ती भी पुरानी हो जायें लेकिन उनके मतलब तो नहीं न बदल जाते हैं भाई। अब विवेक कहते हैं कि उनको फ़ुरसत-उरसत मिले तो वे न जाने क्या-क्या कर डालें। अब आप बताइये कि इस पर वो वाली कहावत लागू होती है कि नहीं- खुदा गंजो को नाखून नहीं देता खैर ये आप बाद में बताइयेगा कौनौ ताऊ की पहेली तो है नहीं जो पिछड़ जायेंगे पहिले देख तो लीजिये कि फ़ुरसत से कौन सा अचार डालेंगे विवेक भाई:

विवेक
यारों के संग ताश खेलकर,
खुलकर हँसने की बारी ।
अट्टहास कर शोर मचायें,
होती हो ज्यों बमबारी ॥
अब बताओ भला ये वाली फ़ुरसत कहीं मांगे मिलती है। ये तो निकाली जाती है- जैसे खली से तेल! जित्ता निकाल सको निकाल लेव। 
प्रमोदजी का गद्य पढ़ने का मजा ही और है। आप देखिये। हम खाली नमूना दिये दे रहे हैं। सब पढ़िये! आराम से कौनौ हड़बड़ी नहीं है। उनकी पोस्ट कौनौ भागी नहीं जा रही है:

प्रमोदजी
  • सिंधु ने एकदम से बुरा मानकर जवाब दिया- लिपस्‍टि‍क लगाती हूं छोटी नहीं हूं, अब?

  • कौमा को यकीन नहीं होता, गुस्‍से में आंख चढ़ाये मेरी साहित्यिकता के सात पुश्‍तों को मां-बहन में तौलता है, विराम खौरियाया मुंह से खखारने की जगह कहीं और से कराहता है क्‍या गुरु, इस तरह तो हम जनम-जनम के एसिडिक हुए, तुम्‍हारी मुहब्‍बत के भरोसे तो पूरे भांगधाम प्‍लैटोनिक हुए?

  • लिखने से समाज बदलता है ऐसा हमें मुगालता नहीं, लिखते-लिखते हमीं कहीं ज़रा सा बदल जायें वही हमारी आत्‍मा का शोभित लालता होगा

  • हिन्‍दी का कमरकसे साहित्‍यकार इस लिहाज से महाबरगदी राजनीतिक समझ की ऊंचाइयों की फुनगियां छूता रहता है. छूता क्‍या रहता है बरगदमाल गरदन में डारे मदहोश अश्‍लील परगतशील हिचकियां लेता रहता है.

  • लालित्‍य के यही रंग हैं, गंवार अक्षरदीक्षित अर्द्धशिक्षितों के यही ढंग हैं, फिर भी जाने क्‍यों है लिखने को अकुलाया रहता हूं, हिन्‍दी में ही लिखूंगा जानता हूं उसकी मुर्दनी में भक्क काला होने की जगह ललियाया रहता हूं?

  • बात-बात पर जैसे अनजाने हो रहा है, उसका हाथ टच करता रहा था तब बास्‍टर्ड को मेरी हाईट से दिक्‍कत नहीं हो रही थी?

  • प्रत्यक्षाजी को समझ में नहीं आ रहा है क्या बात करें? फ़िर भी वे बहुत कुछ कर गईं। देखिये उनके यहां ही जाकर। जाना इसलिये पड़ेगा कि उनके ब्लाग पर कापी ताला लगा हुआ है।
    संजय बेंगाणी पूना गये तो देबाशीष से मिलकर आये। किस्सा और फोटो इहां देखिये। फोटो देबू के बच्चे ने खींचा है और इसीलिये अच्छा भी आया है।

    अलबेलाजी खत्री
    अलबेलाजी खत्री जी बड़े तेज चैनेल वाले ब्लागर हैं। तीन महीने में पांच सौ पोस्ट ठोक चुके हैं। मंच पर आजकल जैसे द्विअर्थी डायलाग वाले चुटकुले और तुकबंदियां सुनी-सुनाई जाती हैं वैसी ही एक कविता ( labels: sex सम्भोग यौनाचार बलात्कार शीलभंग लगाकर) उन्होंने पेश की। रचनाजी ने इस पर अपना एतराज जताया अलबेलाजी ने अपनी पोस्ट तो हटा ली लेकिन रचना और अन्य ब्लागरों को अपने बारे में बताते हुये लिखते हैं-मेरी कवितायें पढ़ने के लिए और समझने के लिए तो एक/मानसिक, आत्मिक, आध्यात्मिक और साहित्यिक स्तर की/ज़रूरत पड़ेगी अब लेव ससुर चुटकुले समझने के लिये भी मानसिक, आध्यात्मिक और साहित्यिक स्तर चाहिये तब तो हो लिया जी। अलबेलाजी की पोस्टों पर वीनस केसरी ने अपना जायज एतराजदर्ज किया है। तबसे अलबेलाजी अपने ब्लाग पर लगातार अपनी तारीफ़ में आत्मनिर्भर बने होये हैं और अपने बारे में सच्ची जानकारियां दे रहे हैं। समझ लें भाई लोग अलबेलाजी को ऐसा-वैसा न समझा जाये। वे टेपा सम्मानित हैं, वे पैरोडी किंग हैं, वे हास्य सम्राट हैं और उनका अन्दाज अलबेला है।
    यह सब तो ठीक है अलबेलाजी लेकिन यह मानने में कौनौ बुराई नहीं है कि आपने अपनी पोस्ट में जो सस्ती भाषा प्रयोग की थी भले ही उससे भद्दी भाषा और लोग प्रयोग करते रहे हों लेकिन वो कोई ऐसी भाषा नहीं थी कि जिस पर सरस्वती का कोई तथाकथित साधक गर्व कर सके। मान जाइये न! अच्छा लगेगा।

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