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शुक्रवार, ३१ जुलाई २००९
बॉलीवुड में मुंशी प्रेमचन्द ने कहा था
“जो लोग बड़े सफल समझे जाते हैं ,वेभी इसके सिवा और कुछ नहीं करतेकि अंग्रेज़ी फ़िल्मों के सीन नकल करलें और कोई अण्ट-सण्ट कथा गढ़करउन सभी सीनों को उसमें खींच लायें।“ साहित्यिक कृतियों पर फिल्में बनाने का सिलसिला बहुत पुराना है ।मुंशी प्रेमचन्द को भी उनके उपन्यास पर फिल्म निर्माण के लिये मुम्बई आमंत्रित किया गया था । अपने मुम्बई निवास के दौरान उन्होने श्रीजयशंकर प्रसाद को एक पत्र लिखा जिसमें वे उस दौर की फिल्मी दुनिया का एक चित्र प्रस्तुत करते हैं .यह चित्र आज भी प्रासंगिक है । प्रसाद जी को लिखा यह पत्र डॉ.विजय बहादुर सिंह.सम्पादक “वागर्थ “के सौजन्य से साभार यहाँ प्रस्तुत है ।
अजंता सिनेटोन लि. बम्बई-12 1-10-1934
प्रिय भाई साहब
वन्दे!
मैं कुशल से हूँ और आशा करता हूँ कि आप भी स्वस्थ्य हैं और बाल-बच्चे मज़े में हैं । जुलाई के अंत में बनारस गया था ,दो दिन घर से चला कि आपसे मिलूँ,पर दोनों ही दिन ऐसा पानी बरसा कि रुकना पड़ा । जिस दिन बम्बई आया हूँ ,सारे रास्ते भर भीगता आया और उसका फल यह हुआ कि कई दिन खाँसी आती रही
मैं जबसे यहाँ आया हूँ मेरी केवल एक तस्वीर फिल्म हुई है । वह अब तैयार हो गई है और शायद 15 अक्टूबर तक दिखाई जाये । तब दूसरी तस्वीर शुरू होगी । यहाँ की फिल्म-दुनिया देखकर चित्त प्रसन्न नहीं हुआ । सब रुपये कमानेकी धुन में हैं ,चाहे तस्वीर कितनी ही गन्दी और भृष्ट हो । सब इस काम को सोलहों आना व्यवसाय की दृष्टि से देखते हैं ,और जन- रुचि के पीछे दौड़ते हैं । किसी का कोई आदर्श ,कोई सिद्धांत नहीं है । मैं तो किसी तरह यह साल पूरा करके भाग आउंगा । शिक्षित रुचि की कोई परवाह नहीं करता । वही औरतों का उठा ले जाना,बलात्कार, हत्यानकली और हास्यजनक लड़ाइयाँ सभी तस्वीरों में आ जाती हैं । जो लोग बड़े सफल समझे जाते हैं ,वे भी इसके सिवा और कुछ नहीं करते कि अंग्रेज़ी फ़िल्मों के सीन नकल कर लें और कोई अण्ट-सण्ट कथा गढ़कर उन सभी सीनों को उसमें खींच लायें ।
कई दिन हुए मि.हिमांशु राय से मुलाकात हुई । वह मुझे कुछ समझदार आदमी मालूम हुए । फिल्मों के विषय में देर तक उनसे बातें होती रहीं । वह सीता पर कोई नई फिल्म बनाना चाहते हैं । उनकी एक कम्पनी कायम हो गई है और शायद दिसम्बर से काम शुरू कर दें । सीता पर दो-एक चित्र बन चुके हैं ,लेकिन उनके खयाल में अभी इस विषय पर एक अच्छे चित्र का माँग है । कलकत्ता वालों की ‘ सीता ‘ कुछ चली नहीं । मैने तो नहीं देखा , लेकिन जिन लोगों ने देखा है उनके खयाल में चित्र असफल रहा । अगर आप सीता पर कोई फिल्म लिखना चाहें तो मैं हिमांशु राय से ज़िक्र करूँ । मेरे खयाल मे सीता का जितना सुन्दर चित्र आप खींच सकते हैं ,दूसरा नहीं खींच सकता । आपने तो ‘ सीता ‘ देखी होगी । उसमें जो कमी रह गई है, उस पर भी आपने विचार किया होगा । आप उसका कोई उससे सुन्दर रूप खींच सकते हैं तो खींचिये । उसका स्वागत होगा ।
भवदीय
धनपतराय
मुंशी प्रेमचन्द के उपन्यासों पर बनी फिल्मों के बारे में आप यहाँ जानकारी प्राप्त कर सकते हैं
शरद कोकास
शरद कोकास का कविता संग्रह
अपने ही आईने में
- शरद कोकास
- दुर्ग, छत्तीसगढ, India
- मुख्य रूप से कविता लिखता हूँ ।कभी कभी कहानी,व्यंग्य,लेख और समीक्षाएँ भी । एक कविता संग्रह "गुनगुनी धूप में बैठकर " और "पहल" में प्रकाशित लम्बी कविता "पुरातत्ववेत्ता " के अलावा सभी महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में कवितायें व लेख प्रकाशित । संगीत सुनना अच्छा लगता है और मित्र बनाना । झोपड़पट्टियों में जाकर उनके दुखदर्द बाँटता हूँ जिनके पास दुख ही दुख हैं । अपनी तरह से ज़िन्दगी जीने का शौक है इसलिये स्टेट बैंक की नौकरी छोड़कर अपनी फाकामस्ती के रंग लाने के इंतज़ार में हूँ ।
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