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ज़िंदगी ये तुझसे
BY KAVYALOK ON APRIL 30, 2011 IN POEMS/KAVITA/GAZAL, SAD, SAD, SHER/CHAND/DOHE
Number of View: 530
ज़िंदगी ये तुझसे,
क्या माँग लिया मैंने
तन्हा था इसलिए,
तेरा साथ मांग लिया मैंने,
तू खफा तो थी,
जाने किस बात पे मुझसे,
मुह फेर लिया मुझसे,
जो थोडा इंतज़ार मांग लिया मैंने |
Anand
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……….रोटी !
BY संजय भास्कर ON SEPTEMBER 26, 2011 IN POEMS/KAVITA/GAZAL
Number of View: 50
भूख न होती, रोटी होती
भूख न होती, रोटी होती
तुम भी होते, हम भी होते
टुकड़ा टुकड़ा करते रोटी
तुम भी खाते, हम भी खाते !भूख होती, रोटी न होती
तुम भी होते, हम भी होते
तरश्ते, बिलखते, सिकुड़ते
तुम भी रोते, हम भी रोते !भूख होती, रोटी भी होती
तुम भी होते, हम भी होते
रोटी रोटी, टुकड़ा टुकड़ा
तुम भी लड़ते, हम भी लड़ते !!लेखक परिचय :
श्याम कोरी ‘उदय’
तुम भी होते, हम भी होते
तरश्ते, बिलखते, सिकुड़ते
तुम भी रोते, हम भी रोते !
तुम भी होते, हम भी होते
रोटी रोटी, टुकड़ा टुकड़ा
तुम भी लड़ते, हम भी लड़ते !!
श्याम कोरी ‘उदय’
स्मृतियों के दलदल में
Number of View: 62
स्मृतियों के दलदल में यादों के गुलशन में सपनो के महफ़िल में नाम तेरा ही छुपा है नक्षत्रों के अक्ष पर मैंने अपने वक्ष पर धरा ने अपने कक्ष पर नाम तेरा ही लिखा है सूरज के किरणों में चंदा के चांदनी में तारों के रोशनाई में नाम तेरा ही रोशन है चढ़कर समय रथ पर फूलों से सजे पथ पर हाथ पर हाथ धरकर पी के संग जाना है मुड़कर न देखूं मै जो बढ़ाये कदम मैंने जन्मो का बंधन है संग संग जीना है |
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BY डा.राजेंद्र तेला ON SEPTEMBER 17, 2011 IN UNCATEGORIZED
मंदिरों की शिलाओं में खोजो नहीं- राम शवरी के बेरों में मिल जायेंगे
BY LOKSANGHARSHA ON SEPTEMBER 17, 2011 IN UNCATEGORIZED
Number of View: 98
दीन दुखियो के डेरों में मिल जायेंगे।
प्रेम के सात फेरो मिल जायेंगे।
मंदिरों की शिलाओं में खोजो नहीं-
राम शवरी के बेरों में मिल जायेंगे॥
प्रेम के सात फेरो मिल जायेंगे।
मंदिरों की शिलाओं में खोजो नहीं-
राम शवरी के बेरों में मिल जायेंगे॥
वो धनुष की सिशओं में मिल जायेंगे।
नन्दी वन के अभावो में मिल जायेंगे।
प्रेम पन मातु सीता सा होवे अगर-
राम वन की लताओं में मिल जायेंगे॥
नन्दी वन के अभावो में मिल जायेंगे।
प्रेम पन मातु सीता सा होवे अगर-
राम वन की लताओं में मिल जायेंगे॥
सींक के वाण में राम मिल जायेंगे।
जल कठौते में भी राम मिल जायेंगे।
ये शिला जैसा तन-मन से चाहे अगर-
पाँव की धूल में राम मिल जायेंगे॥
जल कठौते में भी राम मिल जायेंगे।
ये शिला जैसा तन-मन से चाहे अगर-
पाँव की धूल में राम मिल जायेंगे॥
वो जटायु के क्रंदन में मिल जायेंगे।
या विभीषण के वंदन में मिल जायेंगे।
भक्त की लालसा हो दरस की अगर
राम तुलसी के चन्दन में मिल जायेंगे॥
या विभीषण के वंदन में मिल जायेंगे।
भक्त की लालसा हो दरस की अगर
राम तुलसी के चन्दन में मिल जायेंगे॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ‘राही’
Raga bageshri instrumental music, Flute,sitar,tabla
BY ANAMIKA ON SEPTEMBER 10, 2011 IN AUDIO/VIDEO
हे कवि बजाओ…
BY ANAMIKA ON SEPTEMBER 10, 2011 IN POEMS/KAVITA/GAZAL
Number of View: 80
हे कवि बजाओ मन वीणा
छेड़ो तुम जीवन के तान
शब्द शिखर पर आसीन हो तुम
छेड़ो तुम जन-जन का गान
गीत छेड़ो स्वतन्त्रता के
झूठ छल-कपट का हो अवसान
सत्य अहिंसा ईमान का
जग में करना है उत्थान
मौन रह गए गर तुम कविवर
छेड़ेगा कौन सत्य अभियान
कलम को हथियार बनाकर
करो जन-जन का आहवान
उठो -जागो लड़ो-मरो
करो देश के लिए बलिदान
कवि तुम चुप न रहो -कह दो
सत्य राह हो सबका ध्यान
बातें दिल की
BY KAVYALOK ON JULY 26, 2011 IN ROMATIC, SHER/CHAND/DOHE
Number of View: 382
बातें दिल की ये आँखें बता देती,
ज़ालिम अगर पलके न झुका लेती |
Anand
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बचपन याद आता है
BY AMIT KUMAR SENDANE ON MAY 11, 2011 IN UNCATEGORIZED
Number of View: 430
बचपन याद आता है…………..अमित
०३/०६/२००९
०३/०६/२००९
बीत गया जो बचपन याद आता है,
पल में गुज़र गया वो बचपन याद आता है,
पल में गुज़र गया वो बचपन याद आता है,
यूँ तेज़ चलता देखा है वक़्त को मैंने,
बेवक़्त गुज़र गया वो ज़माना याद आता है,
बेवक़्त गुज़र गया वो ज़माना याद आता है,
अक्सर पहुच जाता हूँ उस दौर में,
मेरा पक्का यार मुझे याद आता है,
मेरा पक्का यार मुझे याद आता है,
ख़ुशी की लहर उठती है दिल में,
जब हर तरफ मचाते थे जो शोर याद आता है,
जब हर तरफ मचाते थे जो शोर याद आता है,
मस्ती मस्ती में सामान टूट गया,
वो डर कर छिपकर बैठना याद आता है,
वो डर कर छिपकर बैठना याद आता है,
माँ पापा का डांट लगाना,
वो फफक फफक कर रोना याद आता है,
वो फफक फफक कर रोना याद आता है,
मेरी पतंग कट गयी यारों,
वो पतंग लूटना याद आता है,
वो पतंग लूटना याद आता है,
पढ़ पढ़ कर थक गए सब.
वो स्कूल से छूटना याद आता है,
वो स्कूल से छूटना याद आता है,
तितलियों संग खेली पकडम पकड़ाई ,
वो तितलियों का दूर तक ले जाना याद आता है,
वो तितलियों का दूर तक ले जाना याद आता है,
खेल खेल में हुआ झगडा ,
वो यारों से रूठना याद आता है,
वो यारों से रूठना याद आता है,
मैं हरदम जिसकी फ़िराक में रहता हूँ,
वो सावन में भीगना याद आता है,
वो सावन में भीगना याद आता है,
बारिश जब थमती .
वो पोखरों में कागज़ी नाव चलाना याद आता है,
वो पोखरों में कागज़ी नाव चलाना याद आता है,
आज शोर कुछ ज्यादा हो गया,
वो पड़ोसियों का चिल्लाना याद आता है,
वो पड़ोसियों का चिल्लाना याद आता है,
कागज़ का प्लेन बनाकर उडाना,
वो कॉपियों के पन्ने फाड़ना याद आता है,
वो कॉपियों के पन्ने फाड़ना याद आता है,
मुझे होमवर्क ज्यादा मिल गया,
वो रात भर जागना याद आता है,
वो रात भर जागना याद आता है,
परीक्षा के समय लाईट जाना,
वो मोमबत्ती के उजाले में पढना याद आता है,
वो मोमबत्ती के उजाले में पढना याद आता है,
गर्मियों में छत पर सोना,
वो टिमटिमाते तार्तों को गिनना याद आता है,
वो टिमटिमाते तार्तों को गिनना याद आता है,
स्कूल में अव्वल पास हुए,
ये बात सबको बताना,सबका आशीर्वाद लेना याद आता है,
ये बात सबको बताना,सबका आशीर्वाद लेना याद आता है,
मुझे कोई अच्छा लगने लगा,
वो बचपन में हुआ प्यार याद आता है,
वो बचपन में हुआ प्यार याद आता है,
महबूबा की माँ ने दिया डांट,
“किस्मत” को कोस कोस दिल ही दिल रोना याद आता है,
“किस्मत” को कोस कोस दिल ही दिल रोना याद आता है,
गुस्से गुस्से में छोड़ आये शहर उनका,
वो नए शहर में भी उनका हर शख्स में दीदार होना याद आता है,
वो नए शहर में भी उनका हर शख्स में दीदार होना याद आता है,
उनके सिवा कोई और भाता नहीं यारों,
वो उनकी याद में सोना याद आता है……………
वो उनकी याद में सोना याद आता है……………
बीत गया जो बचपन याद आता है,
इक पल में गुज़र गया वो बचपन याद आता है…………….
इक पल में गुज़र गया वो बचपन याद आता है…………….
पूज्य गुरुजन एवं मेरे मित्रगण……..
नमश्कार ,
बड़े दिनों बाद अपने ब्लॉग पर मेरा आना हुआ,
ये एक कविता जो आज से २ साल पहले मैंने लिखी थी,आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ,
इस कविता में मेरा अब तक का पूरा बचपन है, जिसे में याद कर कर कभी हस्ता हूँ कभी उदास होता हूँ,
हस्ता हूँ मुस्कुराता हूँ हसीं पल जो मैंने गुज़ारे है,
उदास होता हूँ क्यूंकि वो पल बहुत जल्दी गुज़र गए,और लौट कर वापस नहीं आ सकते….
नमश्कार ,
बड़े दिनों बाद अपने ब्लॉग पर मेरा आना हुआ,
ये एक कविता जो आज से २ साल पहले मैंने लिखी थी,आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ,
इस कविता में मेरा अब तक का पूरा बचपन है, जिसे में याद कर कर कभी हस्ता हूँ कभी उदास होता हूँ,
हस्ता हूँ मुस्कुराता हूँ हसीं पल जो मैंने गुज़ारे है,
उदास होता हूँ क्यूंकि वो पल बहुत जल्दी गुज़र गए,और लौट कर वापस नहीं आ सकते….
आशा करता हूँ आप सभी को पसंद आएगी बचपन की कविता….
आप सभी का एक बार फिर से आशीर्वाद चाहता हूँ ताकि और अच्छी कवितायेँ आगे भी लिख सकूं…..
आप सभी का एक बार फिर से आशीर्वाद चाहता हूँ ताकि और अच्छी कवितायेँ आगे भी लिख सकूं…..
“अमित कुमार सेन्दाणे”
….हाल-ए-वतन
BY संजय भास्कर ON MAY 6, 2011 IN POEMS/KAVITA/GAZAL
Number of View: 500
नक्सलियों ने कत्ले-आम,
नक्सलियों ने कत्ले-आम,
तो आतंकियों ने धमाकों से
गाँव-गाँव, शहर-शहर को
खून से लत-पथ कर दिया ।रही-सही कसर को
भ्रष्टाचारियों ने पूरा कर दिया
आम इंसान का अपने ही
मुल्क में जीना दूभर कर दिया।
भ्रष्टाचारियों ने पूरा कर दिया
आम इंसान का अपने ही
मुल्क में जीना दूभर कर दिया।
लेखक:- श्याम कोरी ‘उदय ‘ |
http://kaduvasach.blogspot.com |
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