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Monday, October 3, 2011



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1/29/2010

पांडुलिपि हेतु गंभीर रचनाकारों से रचना आमंत्रण


पद्मश्री देकर महाकवि को अपमानित करने की भर्त्सना




देश के प्रख्यात कवि एवं मूर्धन्य साहित्यकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री को ‘पद्मश्री’ अंलकरण देने के लिए भारत सरकार की तीव्र भर्त्सना की है और कहा है कि जिस सरकार को साहित्य के क्षेत्र में एक महाकवि और एक चुटकुलेबाज़ के बीच कोई अंतर नहीं दिखाई देता हो, उस सरकार के हाथों यह अंलकरण लेना किसी भी साहित्यकार के लिए अशोभनीय और निंदनीय है । (ज्ञातव्य हो कि छत्तीसगढ़ के एक मंचीय कवि डॉ. सुरेन्द्र दुबे को पद्मश्री अंलकरण मिला है । )


डॉ। मिश्र ने देश के सभी वरेण्य साहित्यकारों से अपील की है कि वे अपने नाम के आगे ‘पद्मश्री रहित’ लिखें, जो उनके चरित्र की शुचिता का प्रमाण होगा । उन्होंने कहा कि पद्म अलंकरण ऐसे अयोग्य व्यक्तियों को दिये जाते हैं जो इनका दुरुपयोग उपाधि के रूप में करते हैं । वे दिन लद गए जब शासन की बागडोर नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे संस्कारवान राजनेताओं के हाथ में था, और दिनकर और बच्चन जैसे अग्रणी साहित्यकारों को अंलकरण दिये जाते थे । अब पद्मश्री अंलकरण पाना किसी साहित्यकार के चापलूस, जुगाड़ी और घटिया होने का सबूत है । इसलिए जो भी साहित्यकार समाज के समक्ष अपने आदर्श चरित्र का उदाहरण रखना चाहते हैं, वे इसे स्वीकार न करें ।


आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के वरिष्ठ सदस्य डॉ। मिश्र ने दावा किया है कि उनके आव्हान पर बनारस, प्रयाग, रावर्टगंज, लखनऊ, पटना, रायपुर, कोलकाता, मुजफ्फरपुर, दिल्ली, भोपाल, मुरादाबाद, मुंबई, देहरादून, काशीपुर चैन्ने आदि शहरों के साहित्यिकारों ने अपने नाम के सात ‘पद्म्श्री रहित’ लिखने का संकल्प किया है । डॉ. मिश्र ने कहा कि देश के साहित्यकारों का यह अभियान तब तक जारी रहेगा, जब तक भारत सरकार की ओर से अधम साहित्यकारों को पद्म अलंकरण देने पर खेद न व्यक्त किया जाये ।



बुद्धिनाथ मिश्र
देवधा हाऊस, गली – 5, बसंत विहार एन्क्लेव
देहरादून, उत्तराखंड – 248006
मोबाईल – 09412992244
ई-मेल - buddhinathji@yahoo.co.in

1/22/2010

हिंदी आशुलिपि एक धरोहर है - राजकुमार नरूला


राजभाषा विभाग भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा संयंत्र कार्मिकों के लिए प्रथम बार हिंदी आशुलिपि प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ दिनांक 4-11-2009 को मानव संसाधन विकास केन्द्र के कक्ष 125 में श्री राजकुमार नरूला महाप्रबंधक (कार्मिक) के मुख्य आतिथ्य एवं श्री दिलीप नंनौरे उप महाप्रबंधक (संपर्क व प्रशासन) की अध्यक्षता तथा श्री अशोक सिंघई सहायक महाप्रबंधक (राजभाषा) की विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण पश्चात् मंगलदीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। उल्लेखनीय है कि इस सत्र में संयंत्र के 17 कार्मिक हिंदी आशुलिपि प्रशिक्षण हेतु पंजीकृत हैं।
मुख्य अतिथि श्री आर.के. नरूला ने अपने सारगर्भित सम्बोधन में कहा कि हिंदी आशुलिपि एक महान कला है जिसको सीखने के लिए आप लोगों को चयनित किया गया है यह गर्व की बात है। राजभाषा आज देश की भाषा बन चुकी है जिसके माध्यम से कार्यालयीन कार्य सम्पादित किये जाते हैं। सर्वप्रथम अपने स्वागत सम्बोधन में श्री अशोक सिंघई सहायक महाप्रबंधक (राजभाषा) ने कहा कि प्रबंध निदेशक महोदय की अध्यक्षता में कार्यरत राजभाषा कार्यान्वयन समिति में लिए गए निर्णयों के तहत हिंदी आशुलिपि का प्रथम बार भारत सरकार गृह मंत्रालय राजभाषा विभाग हिंदी शिक्षण योजना द्वारा संचालित प्रशिक्षण के तहत हिंदी टंकण में उत्तीर्ण मिनिस्टिरियल स्टाॅफ के लिए शुरूआत की गई है। भिलाई बिरादरी जो सोचती है वह करके रहती है हम सभी क्षेत्र में अग्रणीय की भूमिका निभाते हैं। उन्होंने आव्हान किया कि हिंदी आशुलिपि एक कला है संकोच को दूर करते हुए उत्साह व गर्व से इस विधा को सीखें निरंतर अभ्यास करें और कार्यालयीन कामकाज में अवश्य ही इसका प्रयोग करें।

12/31/2009

पांडुलिपि हेतु लेखकों से आमंत्रण

प्रमोद वर्मा जैसे हिन्दी के प्रखर आलोचक की दृष्टि पर विश्वास रखनेवाले, मानवीय और बौद्धिक संवेदना के साथ मनुष्यता के उत्थान के लिए क्रियाशील छत्तीसगढ़ राज्य के साहित्य और संस्कृतिकर्मियों की ग़ैरराजनीतिक संस्था ‘प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान’ द्वारा जनवरी, 2010 से प्रकाश्य त्रैमासिक पत्रिका ‘पांडुलिपि’ हेतु आप जैसे विद्वान, चर्चित रचनाकार से रचनात्मक सहयोग का निवेदन करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता हो रही है । हमें यह भी प्रसन्नता है कि‘पांडुलिपि’ का संपादन ‘साक्षात्कार’ जैसी महत्वपूर्ण पत्रिका के पूर्व संपादक, हिंदी के सुपरिचित कवि, कथाकार एवं आलोचक श्री प्रभात त्रिपाठी करेंगे ।
हम ‘पांडुलिपि’ को विशुद्धतः साहित्य, कला, संस्कृति, भाषा एवं विचार की पत्रिका के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं । आपसे बस यही निवेदन है कि ‘पांडुलिपि’ को प्रेषित रचनाओं के किसी विचारधारा या वाद की अनुगामिता पर कोई परहेज़ नहीं किन्तु उसकी अंतिम कसौटी साहित्यिकता ही होगी । ‘पांडुलिपि’ में साहित्य की सभी विधाओं के साथ साहित्येतर विमर्शों (समाज /दर्शन/चिंतन/इतिहास/प्रौद्योगिकी/ सिनेमा/चित्रकला/अर्थतंत्र आदि) को भी पर्याप्त स्थान मिलेगा है, जो मनुष्य, समाज, देश सहित समूची दुनिया की संवेदनात्मक समृद्धि के लिए आवश्यक है । भारतीय और भारतीयेतर भाषाओं में रचित साहित्य के अनुवाद का यहाँ स्वागत होगा । नये रचनाकारों की दृष्टि और सृष्टि के लिए ‘पांडुलिपि’ सदैव अग्रसर बनी रहेगी।

किसी संस्थान की पत्रिका होने के बावजूद भी ‘पांडुलिपि’ एक अव्यवसायिक लघुपत्रिका है, फिर भी हमारा प्रयास होगा कि प्रत्येक अंक बृहताकार पाठकों पहुँचे और इसके लिए आपका निरंतर रचनात्मक सहयोग एवं परामर्श वांछित है ।

प्रवेशांक ( जनवरी-मार्च, 2010 ) हेतु आप अपनी महत्वपूर्ण व अप्रकाशित कथा, कविता ( सभी छांदस विधाओं सहित ), कहानी, उपन्यास अंश, आलोचनात्मक आलेख, संस्मरण, लघुकथा, निबंध, ललित निबंध, रिपोतार्ज, रेखाचित्र, साक्षात्कार, समीक्षा, अन्य विमर्शात्मक सामग्री आदि हमें 20 जनवरी, 2010 के पूर्व भेज सकते हैं । कृति-समीक्षा हेतु कृति की 2 प्रतियाँ अवश्य भेजें ।

यदि आप किसी विषय-विशेष पर लिखना चाहते हैं तो आप श्री प्रभात त्रिपाठी से ( मोबाइल – 094241-83427 ) चर्चा कर सकते हैं । आप फिलहाल समय की कमी से जूझ रहे हैं तो बाद में भी आगामी किसी अंक के लिए अपनी रचना भेज सकते हैं ।

हमें विश्वास है – रचनात्मक कार्य को आपका सहयोग मिलेगा ।

रचना भेजने का पता –
01. प्रभात त्रिपाठी, प्रधान संपादक, रामगुड़ी पारा, रायगढ़, छत्तीसगढ़ – 496001
02. जयप्रकाश मानस, कार्यकारी संपादक, एफ-3, छगमाशिम, आवासीय परिसर, छत्तीसगढ़ – 492001

7/07/2009

प्रमोद वर्मा सम्मान का मतलब


विश्वरंजन
प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान एक पंजीकृत संस्थान है जिसका गठन छत्तीसगढ़ में जन्मे एक महत्वपूर्ण कवि, लेखक, आलोचक, नाटककार और शिक्षाविद प्रमोद वर्माजी के मूल्यनिष्ठ कार्यों को जिन्दा रखने एवं प्रदेश की सांस्कृतिक चेतना को संपूर्ण देश में प्रतिष्ठा दिलाने के लिए किया गया है। पं. माधवराव सप्रे, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, मुक्तिबोध, श्रीकांत वर्मा तथा प्रमोद वर्मा इत्यादि ने न केवल छत्तीसगढ़ की ज़मीन अपितु समूचे राष्ट्र में आधुनिक संवेदनाओं को विस्तार दिया है । सच्चे अर्थों में वे छत्तीसगढ़ के ऐसे आइकॉन रहे हैं जिनसे यह राज्य अखिल भारतीय स्तर पर बौद्धिकों में शुमार होता है । ऐसे लोगों का सम्मान सांस्कृतिक राज्य छत्तीसगढ़ का सम्मान है ।

मुझे इस संस्थान का अध्यक्ष पुलिस महानिदेशक की हैसियत से नहीं बल्कि प्रमोद वर्मा के मित्र और शिष्य होने की हैसियत से बनाया गया है । उनकी साहित्यिक समझ को विकसित करने में, उसमें त्वरा या तेज़ी लाने में छत्तीसगढ़ के प्रमोद वर्मा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । जो प्रमोद वर्मा को जानते हैं, उन्हें बखूबी मालूम है कि प्रमोद वर्मा की नज़र में नेता, अभिनेता, अधिकारी का कोई महत्व नहीं था जब तक उसमें गहरी संवेदना परिलक्षित नहीं होती । प्रमोद वर्मा एक साहित्यिकार होने के नाते एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने परिस्थितियों के साथ कभी समझौता नहीं किया ।

इधर कुछ लोग उन पर होने वाले दो दिवसीय अखिल भारतीय आयोजन को लेकर तरह-तरह की टिप्पणी कर रहे हैं । ज़ाहिर है ये वो लोग हैं जो न प्रमोद वर्मा को जानते हैं, न ही साहित्य-संस्कृति की धरोहर को बरक़रार रखने में उनकी कोई दिलचस्पी है । उनकी सांस्कृतिक समझ नगद-नारायण की पूजा तक सीमित है जिससे वे दुनिया खरीदना चाहते हैं । वे नहीं जानते कि प्रमोद वर्मा वह शख्स हैं जिनके नाम पर पूरे हिन्दुस्तान में जो सांस्कृतिक और साहित्य की समझ रखनेवाले लोग हैं वे तन-मन-धन और कर्म से आगे आ जायेंगे । ये ऐसे लोग हैं जिनके लिए किसी का सिर्फ पुलिस महानिदेशक होना सामान्य विषय है ।

छत्तीसगढ़ को पहचान दिलानेवाले ऐसे संस्कृति रचयिता के ऐसे विरोधियों को प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के उद्देश्य और स्वप्न से परिचित होना भी आवश्यक है ताकि वे अपनी गिरेबां में झांकने की कोशिश कर सकें कि राज्य की पहचान सिर्फ़ सड़क, पानी, बिजली और उद्योग ही नहीं होते उसकी निजी अस्मिता भी होती है । मनुष्य का बौद्धिक और सांस्कृतिक विकास भी होता है । प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के उद्देश्यों में प्रमुख है –

प्रमोद वर्मा समग्र का प्रकाशन -
रचना शिविर-प्रदेश के विशेष कर दूरस्थ अंचलों के नवोदित,संभावनाशील युवा लेखकों की रचनात्मकता के दिशाबद्ध प्रोत्साहन के लिए प्रत्येक वर्ष निःशुल्क लेखन शिविर का आयोजन किया जायेगा जिसमें देश के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार, भाषाविद्, संस्कृति कर्मी, कलाकार मार्गदर्शन देंगे। इन शिविरों में पिछड़े, आदिवासी, दलित जाति के उभरते हुए रचनाकारों को विशेष प्राथमिकता दी जायेगी । कला, साहित्य, संस्कृति एवं वैचारिकी का एक राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन किया जायेगा।

राष्ट्रीय आलोचना सम्मान - वर्ष-2009 से प्रमोद वर्मा की स्मृति में दो सम्मान प्रारंभ किये जा चुके है जिसमें देश के दो आलोचकों को प्रत्येक वर्ष प्रमोद वर्मा राष्ट्रीय आलोचना सम्मान दिया जा रहा है । इसमें से एक सम्मान युवा वर्ग हेतु सुरक्षित रखा गया है । सम्मान स्वरूप 21 एवं 11 हज़ार रुपये की नगद राशि, प्रतीक चिन्ह, प्रशस्ति पत्र, शॉल श्री फल एवं प्रमोद वर्मा समग्र की प्रति भेंट की जायेगी । वर्ष 2009 के लिए चर्चित आलोचक श्रीभगवान सिंह, भागलपुर एवं युवा आलोचक श्री कृष्णमोहन, वाराणसी को प्रदान किया जा रहा है ।

व्याख्यानमाला - संस्थान द्वारा प्रमोद वर्मा स्मृति व्याख्यानमाला की श्रृंखला शुरू की जायेगी, इस दिशा में वर्ष में नियमित रूप से चार व्याख्यान आयोजित किये जायेंगे, जिसमें देश के महत्वपूर्ण रचनाकारों, विचारकों, आलोचकों को सुना जायेगा ।

प्रमोद वर्मा स्मृति संग्रहालय - प्रमोद वर्मा की स्मृति को जीवंत बनाये रखने, उन पर शोध कार्य करने वालों को प्रोत्साहित करने वाले विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए बिलासपुर में प्रमोद वर्मा स्मृति संग्रहालय की स्थापना की जायेगी जो एक उन्नत लायब्रेरी के रूप में भी विकसित होगी ।

शिष्य-वृति - प्रमोद वर्मा द्वारा विकसित किये गये जीवन-मूल्यों तथा स्वयं उनके द्वारा लिखित साहित्य पर शोध करने वाले छात्रों को प्रति वर्ष शिष्य-वृति प्रदान की जायेगी । इस रूप में चयनित शोधार्थियों को प्रतिवर्ष प्रतिमाह 5 हज़ार रुपये की राशि प्रदान की जायेगी ।

कृति प्रकाशन - प्रत्येक वर्ष आलोचना, कविता एवं नाटक पर केंद्रित 3 महत्वपूर्ण पांडुलिपियाँ आमंत्रित कर उनका प्रकाशन संस्थान द्वारा किया जायेगा । इस महती योजना में अप्रकाशित रचनाकारों लेखकों को वरीयता दी जायेगी जिनकी पांडुलिपियों का चयन एक संपादक मंडल द्वारा किया जायेगा ।

परिसंवाद- कला, संस्कृति, सभ्यता और आधुनिक जीवन से जुड़े मुद्दों पर वैचारिक विमर्श हेतु परिसंवाद, परिचर्चा का आयोजन वर्ष भर किया जायेगा जिसमें विभिन्न अनुशासनों के विद्वानों की प्रतिभागिता रेखांकित होगी। इन आयोजनों से नवागत पीढ़ी सहित समाज के विभिन्न वर्गों का संवेदनीकरण किया जायेगा।

प्रतियोगिताओं का आयोजन - समकालीन कला, साहित्य, संस्कृति के विभिन्न विधाओं और उनके युवा रचनाकारों सहित विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जायेगा और उन्हें सामाजिक स्वीकृति दिलाने के पुरस्कृत किया जायेगा । इसमें लुप्तप्राय विधाओं और उसके रचनाकारों को प्रमुखता दी जायेगी ।

स्मरण - मूल्यांकन - भूलने वाले इस दौर में देश के ऐसे महत्वपूर्ण रचनाकारों की कृतित्व के मूल्याँकन हेतु राष्ट्रीय स्तर पर संगोष्ठी, विमर्श आदि का आयोजन तथा प्रकाशन किया जायेगा, जिनका योगदान हिन्दी संस्कृति में विशिष्ट है । जिसमें देश भर के संपादकों, समीक्षकों, आलोचकों एवं वरिष्ठ साहित्यकारों को जोड़ा जायेगा ।

प्रमोद वर्मा स्मृति हिन्दी भवन - राज्य शासन की मदद से राजधानी में प्रमोद वर्मा स्मृति हिन्दी भवन का निर्माण कराया जायेगा । इससे विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाओं के आयोजन, राजधानी में ठहरने वाले साहित्यकर्मियों को प्रश्रय मिलेगा और राजधानी में नियमित सांस्कृतिक सम्मिलन को गति मिल सकेगी ।

वेबसाइट का संचालन - प्रमोद वर्मा जी के साहित्य, विचार को वैश्विक बनाने के लिए एक वेबसाइट (www.pramodverma.com) का संचालन किया जा रहा है ।

राज्य स्तरीय साहित्यकर्मी डायरेक्टरी प्रकाशन-राज्य के सभी जिलों और विशेष कर दूरदराज के संस्कृतिकर्मियों, लेखकों के नाम-पते और उनकी विधाओं की जानकारी एक साथ संग्रहीत कर प्रकाशन करना।

इसमें जनता भी सहयोग कर रही है और हम शासन से भी सहयोग की अपेक्षा करते हैं क्योंकि यह एक पंजीकृत संस्थान है । इमसें केदारनाथ सिंह, दिल्ली, डॉ. विजय बहादुर सिंह, कोलकाता, डॉ. विश्वनाथ तिवारी, गोरखपुर, डॉ. धनंजय वर्मा, भोपाल आदि जैसे राष्ट्रीय ख्याति के साहित्यकार संरक्षक हैं । संस्थान के संस्थापक सदस्यों में राज्य के वरिष्ठ बुद्धिजीवी, शिक्षाविद् एवं साहित्यकार सम्मिलित हैं । संस्थान के अपने नियम-कायदे बायलाज है जिसके अनुसार सारी गतिविधियों का संचालन हो रहा है । संस्थान का समस्त समस्त लेखा-जोखा पारदर्शी रखा गया है जिसे कोई भी किसी समय आकर अपनी आँखों से देख सकता है । जो लोग इस संस्था में आर्थिक सहयोग कर पा रहे हैं उन्हें बकायदा संस्थान द्वारा रसीद-दिया गया है ।


राज्य हित में सक्रिय और ऐसे पारदर्शी संस्थानों के विकास की न सोचकर उन पर प्रश्नचिन्ह लगानेवालों को यह भी समझने की कोशिश करनी चाहिए कि देश के किसी शासकीय अधिकारी को संविधान के नियमों द्वारा कला, साहित्य, संस्कृति और विज्ञान के क्षेत्र में काम करने को अनुचित नहीं ठहराया गया है ।

ऐसे मिथ्या आरोपों, कुप्रचारों, कुंठाओं और छूछे निरंकुशता से संस्थान को कोई हानि नहीं होनेवाली है और न ही संस्थान अपनी गतिविधियों पर विराम लगानेवाली......

विश्वरंजन
अध्यक्ष, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान
रायपुर, छत्तीसगढ़

6/16/2009

श्रीभगवान सिंह और कृष्ण मोहन को राष्ट्रीय सम्मान

-प्रमोद वर्मा स्मृति आलोचना सम्मान की घोषणा-
रायपुर । प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा स्थापित प्रथम आलोचना सम्मान भागलपुर के डॉ श्री भगवान सिंह को दिया जायेगा । इसी तरह युवा आलोचना सम्मान बनारस के युवा आलोचक श्री कृष्ण मोहन को दिया जायेगा । श्री सिंह हमारे समय के उन सुप्रतिष्ठित और चर्चित आलोचकों में से है जिन्होंने अपने आलोचनात्मक लेखन से समकालीन साहित्यिक आलोचना और परिदृश्य पर एक अलग लक़ीर खींची है । लगभग सांप्रदायिक और विचाररूढ़ हो उठी आलोचना के बरक्स श्री भगवान सिंह एक स्वतंत्र वैचारिक आधार और जातीय दृष्टि लेकर आये हैं। ख़ास तौर से गतिशील राष्ट्रीय जीवन-प्रवाह और गांधी युग के मूल्यों को केंद्र में रखकर उन्होंने जो एक स्वाधीन आलोचनात्मक तेवर प्रदर्शित और रेखांकित किया है ।

डॉ. कृष्ण मोहन की आलोचना में पिछली आलोचना की मध्यमवर्गीय चेतना की तुलना में एक उदग्र लोकतांत्रिकता और वैचारिक ऊष्मा है । वे हमारे समय के एक संभावनाशील आलोचक हैं ।

वर्तमान में श्री भगवान सिंह तिलका माँझी, भागलपुर, बिहार में हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं एवं श्री मोहन विश्वविद्यालय बीएचयू, वाराणसी में रीडर, हिन्दी के पद पर कार्यरत हैं ।

ज्ञातव्य हो कि इस चयन समिति में कवि केदारनाथ सिंह, दिल्ली, डॉ. धनंजय वर्मा, भोपाल, डॉ. विजय बहादुर सिंह, कोलकाता, डॉ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, गोरखपुर, विश्वरंजन एवं जयप्रकाश मानस थे ।

यह सम्मान उन्हें 10-11 जुलाई को रायपुर में आयोजित दो दिवसीय प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह में प्रदान किया जायेगा । सम्मान स्वरूप आलोचक द्वयों को क्रमशः 21 एवं 11 हजार रुपयों सहित प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह, शाल एवं श्रीफल से विभूषित किया जायेगा ।

2/07/2009

सृजनगाथा का नया अंक

सृजनगाथा के नये अंक में पढ़िये

कविता
◙ स्मरणीय - मुकुटधर पांडेयडॉ. केदारनाथ सिंह
◙ कवि - मुमताजस्व. विनय दुबेविश्वरंजनलाल्टूनरेश अग्रवालकृष्णकान्त निलोसेप्रभा मुजुमदार
◙ प्रवासी कवि - अंजना संधीर
◙ माह का कवि - संजीव बख्शी

भाषांतर
 जापानी हाइकू का भावानुवाद - नलिनीकांत
◙ रेत - हरजीत अटवाल -पंजाबी उपन्यास (भाग 15)

छंद
◙ माह के छंदकार - रंजीत भट्टाचार्य
◙ गीत - सुरेश कुमार पंडामदन मोहन शर्माअशोक शर्मा,
कुँअर बेचैनशारदा कृष्ण
◙ ग़ज़ल - सजीवन मयंकराम मेश्रामचन्द्रसेन विराटविज्ञान व्रत
◙ दोहे - रामानुज त्रिपाठी
◙ अजयगाथा दंतेवाड़ा

हस्ताक्षर
◙ डॉ. उदय तिवारी : भाषा वैज्ञानिक - प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन
जब मैं इलाहाबाद में शोध कार्य कर रहा था, उसी अवधि में दिसम्बर 1961 में तिवारी जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जबलपुर वहाँ के विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष के पद पर हिन्दी विभाग स्थापित करने हेतु चले गए थे। आगरा में नियुक्त होने के बाद वहाँ के कार्यभार के कारण मैं इतना व्यस्त हो गया कि डॉ. तिवारी जी को पत्र न लिख सका। जब मुझे डॉ. तिवारी जी का पत्र मिला जिसमें उन्होंने लिखा कि ``आगरे से तुमने कोई पत्र नहीं भेजा और न ही अपना समाचार ही लिखा तो इसे पढ़कर अपनी गलती का अहसास हुआ।
◙ फक्कड़ कवि थे निराला - कृष्ण कुमार यादव

व्याकरण
◙ एक शब्द - आग - गंगाप्रसाद बरसैंया

विचार-वीथी
◙ लोकतंत्र में राजनेता होना चाहिये प्रो. महावीर सरन जैन
◙ जनतांत्रिक चेतना : परिवर्तन का द्योतक - नन्दलाल भारती

हिन्दी विश्व
◙ हिंदी पर हमला - रघु ठाकुर

प्रसंग-वश
◙ आतंकवाद और महिलाएँ - डॉ. सुनीता ठाकुर
दूसरों पर आसानी से यकीन न करना, अपनी इज़्ज़त के लिए मर मिटना, परपुरुष की सहायता तो क्या उससे बात तक न करना जैसी बहुत से हिदायतें हम औरतों ने अपने पुरखों से सीखी होती हैं। ये हिदायतें हमें सिर्फ़ अपने परिवार के सदस्यों तक ही सीमित रहकर जीना सिखाती है। इससे अलग तौर तरीक़े अपनाने वाली महिलाओं को क्या-क्या सुनना और झेलना पड़ता है यह हम सभी औरतें, औरत होने के नाते अच्छी तरह से जानती हैं। यही कारण था कि बहुत-सी औरतें अपनी सरज़मीं पर ही मौजूद सहायताओं को नकार कर एक अनजान शहर में भटकने को तैयार हो जाती हैं। एक ज़मीन से उखड़ती हैं और दूसरी पर उपज नहीं पातीं।

मूल्याँकन
◙ नाटककार और रंगमंच - मोहन राकेश
रंगमंच की पूरी प्रयोग-प्रक्रिया में नाटककार केवल एक अभ्यागत, सम्मानित दर्शक या बाहर की इकाई बना रहे, यह स्थिति मुझे स्वीकार्य नहीं लगती। न ही यह कि नाटककार की प्रयोगशीलता उसकी अपनी अलग चारदीवारी तक सीमित रहे और क्रियात्सक रंगमंच की प्रयोगशीलता उससे दूर अपनी अलग चारदीवारी तक । इन दोनों को एक धरातल पर लाने के लिए अपेक्षित है कि नाटककार पूरी रंग-प्रक्रिया का एक अनिवार्य अंग बन सके।
◙ हिंदी साहित्य-पत्र-पत्रिका की प्रांसगिकता - डॉ. वीरेन्द्र यादव

शेष-विशेष
राजनीति....
◙ ओबामा : आशाएँ व चुनौतियाँ - तनवीर जाफ़री
ओबामा के शांति प्रयासों के बावजूद अफ़ग़ान-पाक सीमा पर निरंतर बगड़ते हालात तथा पूरे पाकिस्तान में चरमपंथियों के फैलते प्रभाव ने अमेरिका की चिंताएँ काफ़ी बढ़ा दी हैं। कई प्रमुख अमेरिकी कूटनीतिज्ञों को इस बात का संदेह है कि बावजूद इसके कि 9/11 के बाद अब तक अमेरिका पर कोई चरमपंथी हमला नहीं हुआ है। परन्तु इस बात की प्रबल संभावना है कि चरमपंथियों द्वारा अगले हमले की योजना पाकिस्तान में बनाई जा सकती है।
रिपोर्ताज....
◙ यहाँ होती है सृष्टिकारों की सृष्टि - उमाशंकर मिश्र
शोध....
◙ हिंदी लघुकथा का विकास - डॉ. अंजलि शर्मा
इन दिनों....
◙ वैश्विक प्रयासों से संभव, आतंकवाद से छुटकारा - तनवीर जाफ़री

कहानी
◙ मैंगोलाइट - तरुण भटनागर
ठीक है, ग्लोब में नहीं है । मास्टर कहता कि, एटलस में नहीं है, नहीं है, दुनिया जहान के नक्शों में । नहीं है देश-दुनिया में । चर्चा में भी नहीं है । पेपरों में, रोज़ के रेडियो के समाचार में भी नहीं है । संयुक्त राष्ट्र संघ की सूची में नहीं है, नहीं है, ओलंपिक के झण्डाबरदार खिलाडियों की परेड में । नहीं है, डाक टिकटों में । कि तिब्बत की कोई मुद्रा नहीं, नहीं उसका कोई झण्डा । कहीं नहीं, किसी देश में नहीं तिब्बत का कोई राजदूत, कोई एम्बेसेडर । संसार में कहीं नहीं तिब्बत का कोई दफ्तर.......... ।
◙ हार ले आना ! - योगन्द्र सिंह राठौर
◙ गुजराती कहानी - जूही - लता हिराणी

संस्मरण
◙ परचून की दुकान से - सुरेश पंडा
एक बार ऐसा हुआ कि शुक्ल जी ने सूचना भिजवायी कि बाबा नागार्जुन आये हैं । जूटमिल धर्मशाला में ठहरे हैं। ज़ल्द पहुँचो । हम राधेश्याम गोयल़, श्रीधर आचार्य शील़, मुस्तफा आदि तीन चार लोग पहुँच गये । वहाँ पर शुक्ल जी शर्मा जी आदि बरिष्ठ लोग बाबा नागार्जुन के साथ बैठे चर्चा में मशगुल थे । देश के इतने बरिष्ठ साहित्यकार को सशरीर समक्ष देखकर हम सभी को संकोच हो रहा था । हम सब भी किनारे एक तरफ़ बैठ गये ।

लघुकथा
◙ दूरअंदेश - मोहम्मद कय्युम
◙ मजबूरी - राजमल डांगी
◙ पागल प्रेमी - श्याम कुमार पोकरा


लोक-आलोक
◙ मोहरी - छत्तीसगढ़ की अनमोल धरोहर - आसिफ़ इकबाल
आदि से आधुनिक होने के सफर में मनुष्य के संग-संग वाद्यों में भी अनगिनत परिवर्तन हुए हैं, किन्तु आज भी ऐसे अनेक श्रेष्ठ वाद्य बचे हैं, जिन्हें परिवर्तन का तीव्र प्रवाह भी परिवर्तित नहीं कर पाया है। ऐसे ही वाद्यों को लोकवाद्य की संज्ञा दी जाती है। इनमें छत्तीसगढ़ का दुर्लभ लोकवाद्य ‘मोहरी’ है, जो मांगलिक प्रसंगों पर बजाया जाने वाला पारम्परिक वाद्य है। इस लोकवाद्य को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाने में राजनांदगांव जिले के पंचराम देवदास का स्थान अग्रक्रम में बना हुआ है।

व्यंग्य
◙ स्वागतम् ! सुस्वागतम् !! - अशोक गौतम

पुस्तकायन
 जाग एक बार - श्री बबन प्रसाद मिश्र
◙ घर-बेघर - कमल कुमार
◙ स्त्री संशब्द : विवेक और विभ्रम-कमल कुमार व मुक्ता

ग्रंथालय में (ऑनलाइन किताबें)
 लौटते हुए परिंदे(कहानी संग्रह) - सुरेश तिवारी
◙ इंद्रधनुष (कविता संग्रह) - डॉ. महेन्द्र भटनागर
◙ प्रिय कविताएँ (कविता संग्रह) - भगत सिंह सोनी

हलचल
(देश विदेश की सांस्कृतिक खबरें)
◙ 'लेखक और प्रतिबध्दता' और 'मॉस्को की डायरी' का विमोचन
 पुस्तक संकट में नहीं है
◙ साहित्यकार संदर्भ कोश का प्रकाशन
◙ महेन्द्र कपूर को गान सम्राज्ञी लता मंगेशकर पुरस्कार
◙ जनवादी नाटककार राजेश कुमार को मोहन राकेश सम्मान
◙ प्रख्यात कवि डा. केदारनाथ सिंह को भारत-भारती
◙ हिन्दी के प्रचार-प्रसार में मीडिया की भूमिका पर संगोष्ठी

12/12/2008

अ.भा. पुरस्कारों हेतु रचनाकारों की प्रविष्टियाँ आमंत्रित

छत्तीसगढ राज्य की बहुआयामी सांस्कृतिक संस्था “सृजन-सम्मान ” की प्रादेशिक कार्यालय द्वारा साहित्य, संस्कृति, भाषा एवं शिक्षा की विभिन्न 28 विधाओं में प्रतिष्ठित रचनाकारों को पिछले 7 वर्षों से प्रतिवर्ष दिये जाने वाले सम्मान हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित की गई हैं । प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथि 15 फरवरी 2008 है।

छत्तीसगढ राज्य के गौरव पुरुषों की स्मृति में दिये जाने वाले यह सम्मान प्रतिवर्ष आयोजित 2 दिवसीय अखिल भारतीय साहित्य महोत्सव में प्रदान किये जाते हैं । संस्था द्वारा सम्मान स्वरुप रचनाकारों को 21, 11, 5, हजार नगद, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह, शॉल, श्रीफल एवं 500 रुपयों की कृतियाँ प्रदान की जाती हैं ।

पुरस्कारों का विवरण निम्नानुसार है –
01. हिंदी गौरव सम्मान – हिंदी वेबसाइट संपादक/ब्लॉगर
02. पद्मश्री मुकुटधर पांडेय सम्मान – लघुपत्रिका संपादक
03. पद्मभूषण झावरमल्ल शर्मा सम्मान – पत्रकारिता हेतु समर्पित
04. महाराज चक्रधर सम्मान – ललित निबंध
05. मंहत बिसाहू दास सम्मान – कबीर साहित्य
06. पं. गोपाल मिश्र सम्मान- कविता
07. नारायण लाल परमार सम्मान - नवगीत/ गीत/ बालसाहित्य
08. डॉ.बल्देव प्रसाद मिश्र सम्मान - कहानी
09. माधव राव सप्रे सम्मान – लघुकथा
10. दादा अवधूत सम्मान – शैक्षिक लेखन
11. प्रमोद वर्मा सम्मान - हिंदी आलोचना
12. रामचंद्र देशमुख सम्मान – लोक लेखन/ प्रस्तुति
13. प्रवासी सम्मान - विदेश में रहकर हिन्दी सेवा
14. समरथ गंवईहा सम्मान – व्यंग्य लेखन
15. विश्वम्भर नाथ सम्मान – छांदस विधा
16. मावजी चावडा सम्मान – बाल साहित्य/समीक्षा/ शोध/पत्रकारिता
17. मुस्तफा हुसैन सम्मान – ग़ज़ल लेखन
18. राजकुमारी पटनायक सम्मान - भाषा एवं लोकभाषा के विशेषज्ञ
19. हरि ठाकुर सम्मान- समग्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व
20. अनुवाद सम्मान- अनुवाद के क्षेत्र में विशेष - कार्य
21. अहिन्दीभाषी सम्मान – ग़ैरहिंदी भाषी द्वारा हिंदी सेवा
22. प्रथम कृति सम्मान – पहली प्रकाशित कृति
23. कृति सम्मान - प्रकाशित पांडुलिपि
24. महेश तिवारी सम्मान – वैचारिक लेखन
25. सृजनश्री – प्रकाशित कृति

नियमः-
१.प्रथम कृति सम्मान के अंतर्गत चयनित अप्रकाशित पांडुलिपि को प्रकाशित कर 100 प्रतियाँ रचनाकार को प्रदान की जायेगी । इसमें इस वर्ष आलोचना/समीक्षा विधा पर ही विचार किया जायेगा ।

२-कृति सम्मान हेतु किसी वरिष्ठ रचनाकार की प्रकाशित या अप्रकाशित किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण पांडुलिपि को चयनोपरांत प्रकाशित की जायेगी, जिसकी 100 प्रतियाँ रचनाकार को प्रदान की जायेगी। इसमें इस वर्ष आलोचना विधा पर ही विचार किया जायेगा ।

३-हिन्दी गौरव सम्मान हेतु अपने बेबसाईट या ब्लाग का विस्तृत विवरण, तकनीकी पक्ष, प्रबंधन, पता, ई-मेल आदि हमारे पते पर भेजना होगा ।

४- प्रविष्टि में रचनाकार स्वयं या अनुशंसा करने वाले को रचनाकार का बायोडाटा, 1 छायाचित्र, कृति की दो प्रतियाँ अनिवार्यतः भेजनी होगी ।

5-प्रविष्टि वाले डाक में सम्मान का नाम एवं वर्ष – 2008 लिखा होना अपेक्षित रहेगा ।
६- उच्च स्तरीय चयन मंडल का निर्णय सर्वमान्य होगा ।

प्रविष्टि हेतु संपर्कः-
जयप्रकाश मानस
संयोजक, चयन समिति,
सृजन – सम्मान,
छत्तीसगढ माध्यमिक शिक्षा मंडल, आवासीय परिसर,
पेंशनवाडा, रायपुर, छत्तीसगढ, पिन-492001,
मोबाइल नं. 94241-82664
ई-मेल – srijan2samman@gmail.com

7/12/2008

समकालीन साहित्य सम्मेलन का 30 वाँ अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन दुबई में

मुंबई । समकालीन साहित्य सम्मेलन का 30 वाँ अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन संयुक्त राज्य अमीरात के दुबई में होने जा रहा है । मुख्य सम्मेलन 29 जुलाई से 3 अगस्त 2008 तक होगा । ज्ञातव्य हो कि इस संगठन का गठनम धर्मयुग के पूर्व उप संपादक और वरिष्ठ रचनाकार श्री महेन्द्र कार्तिकेय ने किया था । विगत सम्मेलन ब्रिटेन में किया गया था जिसमें अनेक देशों के शताधिक रचनाकारों ने अपना हस्तेक्षेप किया था ।

इस सम्मेलन में विश्व भर के 200 से अधिक अधिक साहित्यकार, हिंदी सेवी, प्रचारक और शिक्षाविद् सम्मिलित हो रहे हैं । सम्मेलन में कई विषयों पर संगोष्ठी होगी जिसमें 1. हिंदी भाषा का साहित्य का अतंरराष्ट्रीय परिदृश्य 2. हिंदी काव्य एवं साहित्य में नारीवाद (उपन्यास एवं कहानी के संदर्भ में) 3. हिंदी उपन्यास में यथार्थ प्रमुख सत्र हैं । इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय काव्यपाठ का आयोजन भी इस दरमियान किया जा रहा है।

समकालीन साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद श्री रत्नाकर पांडेय तथा सचिव श्री वैभव कार्तिकेय ने अपनी विज्ञप्ति में बताया है कि इस आयोजन में विश्व भर के हिंदी रचनाकारों को एक दूसरे की रचनाशीलता को समझने और परखने का भी मौक़ा मिलेगा । यह सम्मेलन दुबई में होगा । इसके अलावा हिंदी संस्कृति से जुड़े रचनाकार सद्भाव यात्रा में शरजाह, आबुधाबी, रसलखेमा और रेगिस्तान इलाकों में अपनी दस्तक देंगे । इसमें अभी तक 20 से अधिक देशों के साहित्यकारों ने अपनी सहभागिता सुनिश्चित की है ।

इस सम्मेलन में भारत के 16 राज्यों के साहित्यकारों के साथ छत्तीसगढ़ से जयप्रकाश मानस, डॉ. सुधीर शर्मा, डॉ. जे.आर.सोनी, डॉ. राजेन्द्र सोनी, एच.एस. ठाकुर, सुरेश तिवारी, संजीव ठाकुर, सत्यदेव शर्मा, आर. साहू, रामशरण टंडन, टामन लाल सोनवानी आदि साहित्यकार भाग ले रहे हैं ।

संगोष्ठी में प्रतिभागिता व विस्तृत जानकारी के लिए जयप्रकाश मानस संपादक, सृजन गाथा, एफ-3, माध्यमिक शिक्षा मंडल, पेंशनवाडा, विवेकानंद नगर, रायपुर, छत्तीसगढ़ से संपर्क कर सकते हैं ।

(वैभव कार्तिकेय, मुंबई की रपट)

12/25/2007

हिंदी चिट्ठाकारों से एक विनम्र आग्रह

कुछ चिट्ठाकारों और सहज जिज्ञासुओं ने संस्था को फोन एवं मेल द्वारा संपर्क कर सम्मान हेतु हिंदी के ब्लॉगरों से प्रविष्टि आमंत्रित के बिषय में अपनी जिज्ञासा प्रकट की है । हम उन सभी का स्वागत करते हैं ।

वैसे तो अंतरजाल पर मौजूद सभी चिट्ठों को देखने-पढ़ने और परखने का कार्य निर्णायक मंडल के माननीय सदस्यगण कर रहे हैं । तथापि एग्रीगेटर में शामिल नहीं होने के कारण ऐसे कुछ चिट्ठों के बारे में जानने में सदस्यों को कठिनाई हो सकती है । सो हम उनसे आग्रह करते हैं कि ऐसे चिट्ठाकार अपने चिट्ठों की जानकारी या उनकी दृष्टि में विचारणीय किसी अन्य चिट्ठों के बारे में श्री रवि रतलामी या श्री बालेंदु जी को सम्मान हेतु हिंदी के ब्लॉगरों से प्रविष्टि आमंत्रित नामक पोस्ट में उल्लेखित बिंदुओं के आधार पर भेज सकते हैं । ताकि उन्हें आपका वांछित सहयोग मिल सके और सर्चिंग आदि में समय भी बच सके ।

सभी एग्रीगेटर के आत्मीय नियंत्रणकर्तां से भी आग्रह है कि वे इस दिशा में वांछित सहयोग प्रदान कर सकते हैं ।

राम पटवा
महासचिव
सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़
रायपुर

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