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समाचार

‘दलितों ने भारतीय साहित्य को समृद्ध बनाया है’

14 अक्टूबर, 2010
दलित कथ्यों और कथाओं ने व्यापक तौर पर भारतीय साहित्य को समृद्ध बनाया है। जाने-माने कन्नड़ लेखक और ‘भारतीय साहित्य में टैगोर पीठ’ के प्रमुख डा. यू.आर अनंतमूर्ति ने यह कहा।
20 अगस्त को ‘भारतीय साहित्य में दलितों का योगदान’ विषय पर इग्नू रजत जयंती व्याख्यान देते हुए अनंतमूर्ति ने इस पर प्रकाश डाला कि कैसे दलितों ने ‘अग्रिम मोर्चा और पश्च मोर्चा’ सिद्धांत के जरिए अपनी सांस्कृतिक शर्तों पर उच्च जातियों के प्रभुत्व का प्रतिरोध किया है।
खास हिंदू परिवेश से तुलना करते हुए इस ज्ञानीठ पुरस्कार विजेता लेखक ने कहा कि साहित्य के अग्रिम मोर्चे पर उच्च जातियों का दबदबा है, जबकि पश्च मोर्चा दलितों, महिलाओं और अन्य निम्न जातियों के लिए साहित्यिक धरातल मुहैया कराता है।
उन्होंने कहा, ‘‘पश्च मोर्चे हमारे साहित्य का बड़ा स्रोत रहा है। एक ओर नायकत्व केंद्रित साहित्य अग्रिम मोर्चे से आता रहा है, वहीं पश्च मोर्चे ने भारतीय साहित्य को समृद्ध बनाने वाले कई कथ्यों को जन्म दिया है। पश्च मोर्चा सिद्धांत सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं में भी इसकी परिपाटी है। संस्कृत में इसकी परिपार्टी नहीं है। अन्य क्षेत्रीय भाषाएं इसके पश्च मोर्चे की भूमिका निभाती हैं। दरअसल, यह क्षेत्रीय भाषाओं के कारण ही जीवित है।’’
दलित साहित्य की मौखिक परंपरा पर रोशनी डालते हुए डा. अनंतमूर्ति ने कहा, ‘‘जो साहित्य मौखिक गुणवत्ता खो चुका है, वह साहित्य नहीं है। मौखिक शब्दों को निम्न तबकों के निम्नतम तबके ने बचा रखा है। कहावतें गरीबों के लिए वेद की तरह रही हैं। तो भी कई उग्र सुधारवादी, प्रगतिशील चिंतकों ने दलित साहित्य के मौखिक हिस्से को लोगों की चेतना से जोड़ने की कोशिश नहीं की। जैसा कि हम जानते हैं, भारतीय साहित्य सिर्फ लिखित साहित्य नहीं है।’’
12 वीं सदी से दलित साहित्य के इतिहास पर रोशनी डालते हुए डा.अनंतमूर्ति ने दतिल महाकाव्यों के कथ्यों के बारे में व्यापक चर्चा की। उन्होंने कहा कि दलित महाकाव्यों की अनूठी खूबी यह है कि वे उच्च जातियों की तरह राष्ट्र की बात नहीं करते, बल्कि समुदाय की बात करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘दलितों ने साहित्य में भारी योगदान दिया है, क्योंकि पश्च मोर्चा ने अग्रिम मोर्चे को पीछे छोड़ दिया है। सभी भारतीय भाषाओं में अनकही चीजों और रूपकों का विशद पश्च भंडार रहा है। दलित लेखकों ने इन्हें सामने लाया। दलित महाकाव्य रोज़ाना की जिंदगी को गौरवान्वित करता है। वे पुराने कवियों से सामग्री हासिल करते हुए उनमें थोड़ा अपने सिद्धांतों का पुट देते हैं। इस तरह से वे अपनी पहचान सुदृढ़ करते हैं। ऐसे में उनकी कहानियां अनूठी बन जाती हैं।’’
इग्नू में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास पर बी.आर अंबेडकर पीठ की प्रो. गेल ओमवेड्ट ने बहस में भाग लिया। अपनी टिप्पणी में उन्होंने कहा कि यूं तो दलित साहित्य ने महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं, यह इन दिनों संकट के दौर में पहुच गया है। उन्होंने कहा, ‘‘हमें अभी भी उन योगदानों का इंतजार है जो दलित साहित्य हमसे करता रहा है।’’
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