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Tuesday, October 4, 2011


फटाफट (25 नई पोस्ट): तुम, मैं _
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Tuesday, October 27, 2009

दोहा गाथा सनातन: 40 मुर्दों में भी फूँकता, छंद वीर नव जान.


दोहा गाथा सनातन: ४०

मुर्दों में भी फूँकता, छंद वीर नव जान.

मुर्दों में भी फूँकता, छंद वीर नव जान.
सोलह-पन्द्रह पर यती, रखते हैं रस-वान..

वीर छंद भी दोहा की ही तरह दो पदों (पंक्तियों) तथा चार चरणों (अर्धाली) में रचा जाता है किन्तु दोहे की १३-११ पर यति की जगह वीर छंद में १६-१५ पर यति होती है. बहुधा वीर छंद के १५ मत्री अंश में से चार मात्राएँ कम करने पर दोहा का सम अंश शेष रहता है. वीर छंद में विषम पद की सोलहवी मात्रा गुरु तथा सम पद की पंद्रहवीं मात्रा लघु होती है.

सोलह-पंद्रह यति रखें, गुरु-लघु पर हो अंत.
जगनिक रचकर अमर हैं, गायें आल्हा कंत..



उदाहरण:

१.
संध्या घनमाला की ओढे, सुन्दर रंग-बिरंगी छींट.
गगन चुम्बिनी शैल श्रेणियाँ, पहने हुए तुषार-किरीट..

सम पदों मे से 'सुन्दर' तथा 'पहने' हटाने पर दोहा के सम पदांत 'रंग-बिरंगी छींट' तथा 'हुए तुषार-किरीट' शेष रहता है जो दोहा के सम पद हैं.

वीर छंद को मात्रिक सवैया या आल्हा छंद भी कहा गया है.

२.
तिमिर निराशा मिटे ह्रदय से, आशा-किरण चमक छितराय.
पवनपुत्र को ध्यान धरे जो, उससे महाकाल घबराय.
भूत-प्रेत कीका दे भागें, चंडालिन-चुडैल चिचयाय.
मुष्टक भक्तों की रक्षा को, उठै दुष्ट फिर हां-हां खाँय

३.
कर में गह करवाल घूमती, रानी बनी शक्ति साकार.
सिंहवाहिनी, शत्रुघातिनी सी करती थी आरी संहार.
अश्ववाहिनी बाँध पीठ पै, पुत्र दौड़ती चारों ओर.
अंग्रेजों के छक्के छूटे, दुश्मन का कुछ, चला न जोर..

४.
पहिल बचिनियाँ है माता की, बेटा बाघ मारि घर लाउ.
आजु बाघ कल बैरी मारिउ, मोरि छतिया की दाह बताउ.
बिन अहेर के हम ना जावैं, चाहे कोटिन करो उपाय.
जिसका बेटा कायर निकले, माता बैठि-बैठि पछताय.

५.
टँगी खुपड़िया बाप-चचा की, मांडूगढ़ बरगद की डार.
आधी रतिया की बेला में, खोपडी कहे पुकार-पुकार.
कहवां आल्हा कहवां मलखै, कहवां ऊदल लडैते लाल.
बचि कै आना मांडूगढ़ में, राज बघेल जिये कै काल.

६.
एक तो सुघर लड़कैया के, दूसरे देवी कै वरदान.
नैन सनीचर है ऊदल कै, औ बेह्फैया बसै लिलार.
महुवर बाजि रही आँगन मां, युवती देखि-देखि ठगि जांय.
राग-रागिनी ऊदल गावैं, पक्के महल दरारा खाँय.

७.
सावन चिरैया ना घर छोडे, ना बनिजार बनीजी जाय.
टप-टप बूँद पडी खपड़न पर, दया न काहूँ ठांव् देखाय.
आल्हा चलि भये, ऊदल चलि भये, जइसे राम-लखन चलि जांए.
राजा के डर कोई न बोले, नैना डभकि-डभकि रहि जाएँ.

बुंदेलखंड के कालजयी महाकवि की अमर काव्य कृति 'आल्हा' से अंतिम चार उदाहरण दिए गए हैं जो वीर छंद में विविध रसों की प्रस्तुति कर रहे हैं.

पाठक इनका आनंद लें और वीर छंद रचें.

८.
बड़े लालची हैं नेतागण, रिश्वत-चारा खाते रोज.
रोज-रोज बढ़ता जाता है, कभी न घटता इनका डोज़.
'सलिल' किस तरह ये सुधरेंगे?, मिलकर करें सभी हम खोज.
नोच रहे हैं लाश देश की, जैसे गिद्ध कर रहे भोज..

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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -
गुरु जी, सादर प्रणाम! देर से टपकने के लिये क्षमा-प्रार्थी हूँ. आपकी सेवा में एक ' वीर-छंद ' लिखने का प्रयास किया है जो प्रस्तुत है: नये ज़माने की बातों के, हम सब हो गये हैं कायल अब ऊँची एड़ी संग चले ना, बंधन है पैर में पायल चलते-फिरते सेलफोन से, करते हैं सभी को डायल ढूँढें जब लाइफ-पार्टनर, नेट हेल्प करे आजकल.
shanno का कहना है कि -
This post has been removed by the author.
shanno का कहना है कि -
पहले वाले में न जाने कैसे घपला हो गया और मैं बिना मतलब में अनाम बन गयी. पहला वाला कमेन्ट डिलीट नहीं हो रहा है. हेल्प!!
shanno का कहना है कि -
गुरु जी, एक और यह ' वीर छंद ' लिखा है: सुख-दुख हों या फिर हार-जीत, होते सभी समय का फेर पर दुनिया में फैल रहा अब, हर जगह अति घोर अंधेर आ धमकेगा यमराज जभी, तब ना लगे किसी को देर जायेंगे सब यही छोड़कर, पल में राजा, रंक कुबेर. जिस दोहे को प्रस्तुत करने के प्रयास में मूर्खता से कक्षा में लेथन सी हो गयी थी तो उसमें और सुधार कर के यहाँ फिर से प्रस्तुत कर रही हूँ: नये ज़माने की बातों के, हम सब ही हो गये कायल ना ऊँची एड़ी संग चले, अब बंधन पैर में पायल चलते-फिरते सेलफोन से, करे सबको दुनिया डायल जीवन-साथी पाने को अब, नेट पर रहती है हलचल. कृपया अपने बिचार लिखें.
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' का कहना है कि -
शन्नो जी! वीर छंद लिखने के लिए शुभ कामनाएँ. इसे दोहा न कहें यह दोहा परिवार का छंद है किन्तु इसका नाम वीर, आल्हा या मात्रिक सवैया है.
shanno का कहना है कि -
जी गुरु जी, आगे से ध्यान रखूँगी की कोई गड़बडी न होने पाये.

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