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Tuesday, October 4, 2011



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ग़ज़ल =  एक समान रदीफ (समांत) तथा भिन्न भिन्न काफियों (तुकांत) से सुसज्जित एक ही वज्न( मात्रा क्रम) अथवा एक ही बह्र (छंद) में लिखे गए अलग अलग शेरों का समूह   

शाईरी = ग़ज़ल लिखने की प्रक्रिया

शाइर = ग़ज़ल लिखने वाला

शे’र =   एक से रदीफ (समांत) तथा भिन्न भिन्न काफियों (तुकांत) से सुसज्जित एक ही वज्न अथवा एक ही बह्र में लिखी गई दो पंक्तियाँ जिसमें किसी चिंतन विचार अथवा भावना को प्रकट किया गया हो
उदाहरण =                  हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए 
                               इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
                                     मेरे  सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
                               हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए 

अशआर = शेर का बहुवचन 

मिसरा -ए- उला = शेर की पहली पंक्ति   
उदाहरण =                  हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए 
                               इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

मिसरा -ए- सानी = शेर की दूसरी पंक्ति 
उदाहरण =                  हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए 
                               इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

मतला = ग़ज़ल का पहला शेर जिसके दोनों मिसरों में काफिया रदीफ होता है (यह भी शेर ही कहलाता है और इसे ग़ज़ल का पहला शेर कहा जाता है, इसके बाद का शेर दूसरा शेर होगा, मतले से ही रदीफ काफिया बह्र आदि को चुना जाता है और शायर को पूरी ग़ज़ल में इसका निर्वाह करना पढता है)
 उदाहरण =                  हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए 
                               इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

हुस्ने मतला = यदि ग़ज़ल में मतला के बाद एक और मतला है तो उसे हुस्ने मतला कहा जाता है  

मक्ता = यह ग़ज़ल का आख़िरी शेर होता है जहाँ शायर अपना तखल्लुस (उपनाम) लिखता है (याद रहे जिस आख़िरी शेर में तखल्लुस नहीं होता है उसे मकता नहीं आख़िरी शेर कहते है और उस ग़ज़ल में मक्ता नहीं होता)

उदाहरण =                  मैंने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'
                                    मुफ़्त हाथ आये तो बुरा क्या है

रदीफ = वह समांत शब्द जो मतले के दोनों मिसरों के अंत में आता है तथा बाकी के शेरों के मिसरा ए सानी के अंत में आता है और पूरी ग़ज़ल में एक सा रहता है और पूरी ग़ज़ल में एक मात्रा अथवा एक बिंदी भी बदली  नहीं जा सकता (बिना रदीफ के भी ग़ज़ल हो सकती है) 
उदाहरण =                  हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए 
                               इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

मुरद्दफ़ ग़ज़ल = रादीफवार, वो ग़ज़ल जिसमें रदीफ होता है  
उदाहरण =                  हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए 
                               इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल = वो ग़ज़ल जिसमें रदीफ नहीं होता है  
 उदाहरण =                        ग़ज़लों से पहले दोस्ती, फ़िर प्यार अब दीवानगी
                                           मुझको ये बढती तिश्नगी, जाने कहां ले जा रही

काफिया = वह शब्द जो रदीफ के ठीक पहले आता है और तुकांतता के साथ हर शेर में बदलता रहता है,  शेर का आकर्षण काफिये पर ही टिका होता है काफिये का जितनी सुंदरता से निर्वहन किया जायेगा शेर उतना ही प्रभावशाली होगा (बिना काफिया के ग़ज़ल नहीं हो सकती है) 
उदाहरण =                  हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए 
                               इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए


बह्र = छंद, वह लयात्मकता जिस पर ग़ज़ल लिखी/ कही जाती है 
जैसे – बह्र -ए- रमल २१२२ , बह्र -ए- हजज १२२२ , बह्र -ए- रजज २२१२   आदि   
               
रुक्न = गण, घटक, पद, निश्चित मात्राओं का पुंज, जैसे हिंदी छंद में गण होते है - यगण के लिए यामाता, तगण के लिए ताराज आदि उसी तरह ग़ज़ल में ये घटक रुक्न कहलाते हैं जैसे – रमल के लिए फाइलातुन, रजज के लिए मुफाइलुन आदि
जैसे = फइलातुन, फइलुन, फैलुन आदि  

मात्राएं = जैसे हिंदी गण कि निश्चित मात्रा होती है - यगण के लिए २२२ , तगण के लिए २२१ उसी तरह हर रुक्न की भी एक निश्चित मात्रा होती है
जैसे – रमल के लिए २१२२ , रजज के लिए १२२२ आदि  

अर्कान = अर्कान रुक्न के बहुवचन को कहते हैं, अर्कान रुक्न के समूह से निर्मित होते है, यह छंद का सूत्र होता है और किसी रुक्न का शेर में कितनी बार प्रयोग हुआ है इससे ग़ज़ल की बह्र का वास्तविक रूप सामने आता है  
जैसे –  “फईलातुन”(२१२२) रमल का मूल रुक्न है  
फईलातुन / फईलातुन / फईलातुन / फईलातुन (२१२२/२१२२/२१२२/२१२२) यह रुक्नों का एक समूह है जिससे एक बह्र(छंद) का निर्माण होता है जिसे “बह्र-ए-रमल मुसम्मन सालिम” कहते हैं   
इस अर्कान पर शेर लिखा/कहा जा सकता है  

जुज = रुक्न के खंड करने पर हमें जुज प्राप्त होते है अर्थात जुज एक इकाई है जिससे रुक्न का निर्माण होता है
जैसे = २१२२ रुक्न २१+२२ दो जुज से बना हैं (जुज मात्रा के योग से बनता है और यह दूसरी सबसे छोटी इकाई है)

अज्जा = जुज के बहुवचन को अज्जा कहते हैं  

लाम = लाम का अर्थ होता है “लघु” और इसे १ मात्रा के लिए प्रयोग करते हैं जैसे = अ = १
(यह सबसे छोटी इकाई है )

गाफ  = गाफ का अर्थ होता है दीर्ध और इसे २ मात्रा के लिए प्रयोग करते हैं जैसे = आ =२
(यह भी सबसे छोटी इकाई है )

(अब आप स्पष्ट समझ सकते हैं कि, लाम-गाफ(मात्राओं) के योग से जुज बनता हैं जुज के बहु वचन को अज्जा कहते हैं, जुज से समूह से रुक्न बनता हैं रुक्न के बहुवचन को अर्कान कहते हैं, रुक्न के निश्चित समूह से अर्कान बनते हैं जिनसे एक निश्चित धुन (बह्र) बनती है और उस धुन पर मिसरा लिखा जाता है, दो मिसरों से शेर बनता है, शेर के बहुवचन को अशआर कहते हैं और शेर के समूह से ग़ज़ल बनती है

अब बात करते हैं उन शब्दों की जो  बह्र से सम्बंधित हैं -
क्रमशः ...

Replies to This Discussion

kisee serial jaisa aise point par khatm kiya hai ki ..........
हा हा हा
नहीं ऐसी बात नहीं है चर्चा.... बहुत लंबी हो रही थी इसलिए अलग अलग पोस्ट में करना पड़ा :)
एक उत्तम प्रयास.. .
जिनके पास नोट न हों वो एक बेहतर नोट बना सकते हैं.   वीनसभाई .. साधु-साधु.
शुक्रिया सौरभ जी
वीनस भाई, किसी भी विधा में प्रयोग होने वाले शब्दावलियों का विशेष महत्व है, यदि हम शब्दावलियों को न समझे तो आगे की चर्चा सर के ऊपर से निकलने लगेगी, इस लिए यह आवश्यक है की हम लोग शब्दावलियों से अच्छी तरह परिचित हो ले, 
वीनस भाई आप बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी साझा कर रहे है, आपको कोटिश : आभार |
बागी जी मैं माध्यम हूँ, जो गुरुजन से सीखा वो यहाँ रख दिया 

आपके इस प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ
वीनस जी,
बहुत ही लाभप्रद लेख है,
शुक्रिया,
आराधना
धन्यवाद
वीनस जी,
बहुत उपयोगी जानकारी बाँट रहे हैं आप सदस्यों से इसके लिये साधुवाद! एक शंका हुई उसका निवारण चाहता हूँ। कहीं पर सुना या पढ़ा था कि मतले के बाद वाले शे’र को पहला शे’र कहते हैं और इसी तरह मक़्ते के ठीक पहले वाले वाले शे’र को आख़िरी शे’र। कहाँ तक सही है यह बात।आशा है आप उत्तर पूरी खोजबीन के बाद ही देंगे। :)
सादर
 " फिराक गोरखपूरी ने ' मत्लअ ' की परिभाषा देते हुए लिखा है कि - मत्लअ ग़ज़ल के उस प्रथम शेर को कहते हैं जिसमें रदीफ काफिया एक होते हैं |"     = ग़ज़ल : सौंदर्य मीमांसा, पृष्ठ - ११, लेखक - अब्दुर्रशीद ए. शेख
" जिस स्थान पर ग़ज़ल आ कर रुक जाए उस स्थान को मक्'तअ कहते हैं, फिराक गोरखपुरी ने ग़ज़ल के आख़िरी शेर को मक्'तअ कहा है "                     = ग़ज़ल : सौंदर्य मीमांसा, पृष्ठ - १२ , लेखक - अब्दुर्रशीद ए. शेख
" ग़ज़ल के सबसे पहले शेर को मतला कहते हैं | उसकी दोनों पंकियों में ......."   = ग़ज़ल का व्याकरण , पृष्ठ = ४८  लेखक - डा. कुंवर बेचैन
" मकतअ ग़ज़ल के अंतिम शेर को कहते हैं | इसमें शायर अपने नाम का प्रयोग ....."   = ग़ज़ल का व्याकरण , पृष्ठ = ४९   लेखक - डा. कुंवर बेचैन
निष्कर्ष =
१ - ग़ज़ल का मतला ही पहला शेर है और उसके बाद का शेर 'दूसरा शेर' 
२- मक्ता ही ग़ज़ल का आखिरी शेर है, उसके पहले का शेर 'आख़िरी से पहला' (यदि उपनाम न लिखा जाए तो उसे "मक्ता" नहीं केवल आखिरी शेर कहेंगे)
आदरणीय अमिताभ जी आशा करता हूँ आप इस उत्तर से संतुष्ट होंगे |
- आपका वीनस

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