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Tuesday, October 4, 2011

navya


आज का विचार

DURGA
शारदीय नवरात्र में यूँ तो पूरे भारत में ही दुर्गा पूजा की धूम रहती हैं, मगर बात जब बंगाल की हो तो श्रद्धा और उत्साह दोगुना हो जाता है।
बंगाल में दुर्गा पूजा की तैयारियाँ काफी पहले ही शुरू हो जाती हैं। यहाँ पंचमी से दुर्गोत्सव की शुरुआत होती है। महाकाली की नगरी कोलकाता में तो पाँच दिनों तक श्रद्धा और अस्था का ज्वार थमने का नाम ही नहीं लेगा।
पूजा के चार दिन सभी लोग खुशियाँ मनाते हैं। जिस प्रकार लड़की विवाह के बाद अपने मायके आती है। उसी प्रकार बंगाल में श्रद्धालु इसी मान्यता के साथ यह त्योहार मनाते हैं कि दुर्गा माँ अपने मायके आई हैं।

दुर्गोत्सव से पहले तो देवी माँ की सुन्दर और मनोहारी मूर्तियाँ बनाई जाती हैं। प्रमुख रूप से कोलकाता के कुमोरटुली नामक स्थान पर कलाकार मूर्तियों को आकार देते हैं।
बंगाली मूर्तिकार द्वारा देवी दुर्गा के साथ लंबोदर गणेश, सरस्वती, लक्ष्मी और कार्तिकेय की भी मूर्तियाँ बनाई जाती हैं। देश के बहुत से प्रांतों में बंगाली मूर्तिकारों की खूब माँग रहती है। यहाँ निर्मित मूर्तियाँ देश के अन्य स्थानों के साथ ही विदेशों में भी भेजी जाती हैं।
दुर्गा पूजा के लिए कोलकाता में विशाल पंडाल सजाए जाते हैं। शहर और दूर गाँवों से आकर शिल्पकार पंडालों का निर्माण करते हैं। इन भव्य पंडालों को बनाने में आने वाली लागत लाखों रुपए में होती है।

इन दिनों जमकर खरीददारी की जाती है। फुटपाथ पर लोग सजावट की बहुत सारी सामग्री बेचते हैं। दुकानों से लेकर शॉपिंग मॉल तक हर जगह भीड़ का रेला दिखाई पड़ता है। सभी अपनी-अपनी पसंद की चीजें खरीदते हैं।

लोग अपने परिजनों, संबंधियों को वस्त्र आदि उपहार स्वरूप देते हैं। विजया दशमी के दिन माँ का विसर्जन होता है। जय माँ दुर्गा।
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