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Tuesday, October 4, 2011

मीडियामोरचा











प्रेमचंद के बाद नाट्य अकादमी के निशाने पर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

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कौशल किशोर / क्या भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बहुविवाह प्रथा के समर्थक थे ? क्या वे घर्मांतरण के भी समर्थक थे ? क्या वे मुस्लिम विरोधी नाटककार थे ? लखनऊ में मंचित नाटक ‘गुलाम राधारानी के’ से भारतेन्दु की ऐसी छवि उभारी गई है जिससे यह दिखाया जा सके कि वे मुस्लिम विरोधी कट्टर हिन्दूवादी, बहुविवाह प्रथा तथा धर्मांतरण के समर्थक स्त्री विरोधी नाटककार थे। …{आगे पढ़ें }
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ससुरी आत्मा के खिलाफ चेतावनी

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यादवेन्द्र/लखनऊ से अखिलेश के संपादन में निकालने वाली साहित्यिक पत्रिका तद्भव के जनवरी 2011 के 23वें अंक में काशीनाथ सिंह की दो कहानियाँ प्रकाशित हुई हैं.दोनों कहानियों में एक बात साझा है कि दोनों बड़ी उद्दंड बेशर्मी से आदमी के मन के उजाले के बहुमत को नकारती हैं और अल्पमत अँधेरे को छत से चिल्ला चिल्ला कर उजागर करती हैं. अभी हम पहली कहानी खरोंच से बात शुरू करते हैं. {आगे पढ़ें……}
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खबर ढून्ढ रहे हो?

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श्रीकांत सक्सेना / कविता /
अखबार मे तुम कोई खबर ढून्ढ रहे हो?
नादान हो बाज़ार मे घर ढून्ढ रहे हो
.
टीवी पे शराफ़त को किधर ढून्ढ रहे हो?
कालर पकड के ज़िन्दगी के फ़ैसले करो {आगे पढ़े …}
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स्ट्रेंज फ्रूट

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यादवेन्द्र / स्ट्रेंज फ्रूट पिछली सदी के तीस के दशक में न्यूयार्क स्टेट के एक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने वाले रूस से भाग कर अमेरिका में बस गए गोरे यहूदी अबेल मीरोपोल (उस समय वे लेविस एलन के छद्म नाम से कवितायेँ लिखा करते थे) का गीत है जो अमेरिका की कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता थे.{ आगे पढ़ें…..}
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सुखिया मर गया भूख से

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कौशल किशोर / प्रेमचंद ने आज से 75 साल पहले अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘गोदान’ की रचना की थी। यह भारतीय किसान की त्रासदी और उसके संघर्ष की कहानी है। उपन्यास का नायक होरी इसका प्रतिनिधि पात्र है। वह कर्ज और सूदखोरी पर आधारित महाजनी सभ्यता का शिकार होता है। इस व्यवस्था द्वारा वह तबाह.बर्बाद कर दिया जाता है।{आगे पढ़ें …..}
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ख़बर नहीं पढ़ते

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पी. दयाल श्रीवस्तव / कविता
रोज़ रोज़ छपती रहतीं हैं फिर भी ख़बर नहीं पढ़ते
तस्वीरें मिटती रहती हैं एक भी नज़र नहीं पढ़ते।
एक कन्या की इज्जत लुटी, सुरबाला उठवाई गई,
अखवारों के सफ़े हाथ में, भरके नज़र नहीं पढ़ते।[read more..]
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मगर खबरें अभी और भी हैं…!

एसपी सिंह पर विशेष / निरंजन परिहार/ वह शुक्रवार था। काला शुक्रवार। इतना काला कि वह काल बनकर आया। और हमारे एसपी को लील गया। 27 जून 1997 को भारतीय मीडिया के इतिहास में सबसे दारुण और दर्दनाक दिन कहा जा सकता है। उस दिन से आज तक पूरे चौदह साल हो गए। एसपी सिंह [...]
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साहित्य जो समाज से कटा हो, साहित्य नहीं -होरी

साहित्य / प्रशासनिक दायित्वों के साथ-साथ साहित्य व सामाजिक क्षेत्र में प्रसिद्धि पा चुके अब तक क़रीब दो दर्जन से अधिक पुस्तकों, काव्य ग्रंथों व बाबा साहब चरित मानस की रचना कर चुके , ख्यातिलब्ध साहित्यकार, समाजसेवी, वर्तमान में अपर आयुक्त आजमगढ राजकुमार सचान ‘होरी’ का मानना है कि यदि समाज में जारी विघटन को [...]
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दिल्ली के रंगमंच पर कल बुश पर पड़ेगा जूता

संजय कुमार / साहित्य / ‘‘द लास्ट सैल्यूट’’ नाटक के नई दिल्ली में मंचन के जरिये भारतीय रंगमंच कल 14 मई को इतिहास रचने जा रहा है। बुश पर जूते की दस्तान को समेट ‘‘द लास्ट सैल्यूट’’ नाटक के निर्माता हैं चर्चित फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट। निर्देशन अरविंद गौड़ का है और पटकथा लिखी हैं [...]
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हस्तलिखित अखबार निकालते थे मोख्तार जयनाथपति

अशोक प्रियदर्शी / साहित्य / भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की इतिहास पल भर में नही गढ़ी गई थी। इसके लिए कई स्तर से प्रयास हुए थे जिसके बाद 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो सका था। नवादा जिले के मोख्तार जयनाथपति इसी कड़ी का एक अहम हिस्सा थे, जो स्वतंत्रता के लिए हस्तलिखित अखबार के [...]
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    पत्रकारिता : एक नज़र में

    • पत्रकारिता के उद्देश्य
      पत्र- पत्रिकाओं में सदा से ही समाज को प्रभावित करने की क्षमता रही है। समाज में जो हुआ, जो हो रहा है, जो होगा, और जो होना चाहिए यानी जिस परिवर्तन की जरूरत है, इन सब पर पत्रकार को नजर रखनी होती है। आज समाज में पत्रकारिता का महत्व काफी [...]

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