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Tuesday, October 4, 2011

राय एक मुक्त छंदकार बनने की










अतुल मिश्र 
" आप मुक्त छंद में अपनी कवितायें क्यों नहीं लिखते ? " मुक्त छंद कविताओं के किसी ऐसे पाठक ने हमसे पूछा, जो शायद अंग्रेजी के अध्यापक थे और इस बात से सख्त नाराज़ थे कि सूर, कबीर, तुलसी, जायसी और रसखान जैसे कवियों ने छंद में कवितायें लिखकर अपना टाइम क्यों खराब किया, जबकि मुक्त छंद में कुछ भी लिख दो, वह समझ में भले ही ना आये, लेकिन टाइम बच जाता है.
" आपको कोई आपत्ति है ? मेरे लाखों पाठकों को पसंद आती हैं और मैं जब छंद में लिख सकता हूं तो मुक्त छंद में क्यों लिखूं ? " यह हमारा वह सवाल था, जो उनकी उस पीड़ा पर चोट कर रहा था, जो लाख चाहते हुए भी उनके द्वारा छंद ना कह पाने की वजह से था.
" देखिये, लोग कितना अच्छा लिख रहे हैं मुक्त छंद में ? " किसी की मुक्त छंद वाली रचना की फ़ोटो स्टेट कॉपी हमें दिखाते हुए उन्होंने सवाल के एवज़ में ऐसे सवाल किया, जैसे वह उन्ही की कविता जैसी कोई चीज हो. हमने उसे बाक़ायदा पढने की कोशिश की तो भी हमें कुछ समझ नहीं आया कि यह है क्या बला ?
 " इसका अर्थ हमारी तो समझ में अभी तक नहीं आ पा रहा, आपकी समझ में कुछ आ रहा हो तो, हमें कभी समझा दीजियेगा लिखकर. " हमने मुक्त छंद के हिमायती पाठक को एक ऐसा काम सौंप दिया, जिसके बारे में हमको पता था कि जब वह मुक्त छंदकार ही अपनी कविता का अर्थ नहीं बता सकता, तो वे बेचारे क्या खाकर बता पायेंगे ?
" फिर भी, आप मुक्त छंद में ही क्यों नहीं लिखते ? " मुक्त छंद के पाठक का यह सवाल हमें अब खलने लगा था और उसमें से ऐसी बू आने लगी थी, जैसे किसी ने उन्हें जबरदस्ती हमको भी मुक्त छंदकार बनाने के लिए प्रेरित किया हो और वे इसी भावना के तहत अपना फ़र्ज़ पूरा कर रहे हों.
" आपकी ' फेस बुक ' पर हमने एक फ़िल्मी गीत पढ़ा था, जो छंद में था और जिसके बोल कुछ इस प्रकार हैं--" चलो, दिलदार चलो, चांद के पार चलो. " इसी के साथ एक चित्र भी कहीं से लेकर दिया हुआ था, जिसमें आपके दिलदार की जगह हमको दो कौएनुमा पक्षी उड़ते हुए दिखाई दिए, जो यक़ीनन चांद की ओ़र तो जा रहे थे, मगर शारीरिक द्रष्टि से ऐसा कहीं नहीं लग रहा था कि वे किसी भी तरह से आपके दिलदार हो सकते हैं. " हमने छंदकार ना बन पाने की पीड़ा से त्रस्त उस मुक्त छंद के समर्थक से कहा.
" अच्छा यह मुक्त छंद नहीं है क्या ? " मुक्त छंद के बारे में दूसरों से कुछ सुन लेने भर से मुक्त छंद के समर्थक बने उस प्राणी ने हमसे पूछा.
" क्यों नहीं है ? जब दोनों कौए, जिनको आप अपने दिलदार मान चुके हैं, मुक्त होकर चांद की तरफ जा रहे हैं, तो यह गाना भी तो मुक्त छंद ही  हुआ ? " मुक्त छंदकार ना बन पाए पाठक को समझाते हुए हमने कहा.
 " फिर यह क्या है, जो कविता हमने आपको अभी दिखाई थी ? " फ़ोटो स्टेट कॉपी में दर्ज़ किसी आदमीनुमा प्राणी की दी हुई कविता हमें दिखाते हुए मुक्त छंद के हिमायती ने उस आदमी का नाम भी हमको पढ़वा दिया, जो कवि सम्मेलनों में बुरी तरह से हूट होने के बाद स्वर्गीय काका हाथरसी आदि हास्य कवियों की कुंडलीनुमा कविताओं को मुक्त छंद की बताकर उन्हें वेब साइट्स पर परोसने में लगा है.
" मेरे भाई, आपको लेक्चरार किसने बना दिया ? ये कुण्डलियाँ जो काका जी लिखा करते थे, वे सब छंद में हैं और छंद कभी भी मुक्त नहीं हो सकता. बहुत सारी बंदिशें होती हैं उसमें, समझे आप ? " हमने यह सोचते हुए कि इस देश के अध्यापकों के जब ये हालात है कि वे कविता और अकविता के बीच कोई फर्क नहीं समझते, तो फिर उन लोगों का क्या होगा, जो आज मुक्त होकर मुक्त छंद लिखने के लिए उनसे कोचिंग क्लासेज़ में ट्रेनिंग ले रहे हैं. हमारी इस बात को वे भले ही अपने पास समझने वाले यंत्र के अभाव में ना समझ पाए हों, मगर वे लोग ज़रूर समझ गए होंगे, जिन्होंने उनकी मार्फ़त हमें अपनी ही तरह एक असफल मुक्त छंदकार बनने की राय दिलवाई थी.

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